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उत्तराध्ययननियुक्ति
यह उत्तराध्ययनसूत्र के प्राप्त व्याख्याग्रन्थों में सर्वाधिक प्राचीन है। इसमें ५५७ गाथायें हैं जिनमें उत्तर, अध्ययन, श्रुत, स्कंध, संयोग, गलि, आकीर्ण, परिषह, एकक, चतुरूक, अंग, संयम, प्रमाद, संस्कृत, करण, उरभ्र, कपिल, नमि, बहुश्रुत, पूजा, प्रवचन, साम, मोक्ष, चरण, विधि, मरण आदि परिभाषिक पदों की निक्षेपपूर्वक व्याख्या की गई है। साथ ही विवेच्य विषय से सम्बन्धित शिक्षाप्रद कथानकों की भी सूचना है। जिस प्रकार 'अंग' शब्द की नियुक्ति करते हुए गंधांग,
औषधांग, मधांग, आतोधांग, शरीरांग और युद्धांग के भेद प्रभेदों का भी उल्लेख किया गया है; उसी प्रकार अन्य शब्दों की नियुक्ति करते हुए उनके भी भेद प्रभेदों की चर्चा हुई है। उदाहरणार्थ मरण की व्याख्या में सत्रह प्रकार के मरणों का उल्लेख किया गया है, जो प्रायः समवायांगसूत्र के समरूप ही है।
इस प्रकार इस नियुक्ति में अनेक महत्त्वपूर्ण सूचनायें उपलब्ध हैं। अतः यह उत्तराध्ययनसूत्र के उत्तरवर्ती व्याख्यासाहित्य का आधार है।
२.८.२ भाष्य साहित्य और उत्तराध्ययन भाष्य
नियुक्ति में पारिभाषिक शब्दों का जो संक्षिप्त रूप मिलता है उसे अधिक स्पष्ट करने हेतु भाष्यों की रचना हुई। इनकी भाषा प्राकृत एवं शैली पद्यात्मक है।
प्रत्येक आगम पर जैसे नियुक्तियां नहीं लिखी गई, वैसे ही प्रत्येक नियुक्ति पर भाष्य भी नहीं लिखे गये हैं। कुछ भाष्य नियुक्तियों पर हैं तो कुछ मूलसूत्रों पर लिखे गये हैं। निम्न आगमग्रन्थों पर भाष्य लिखे गये हैं- १. आवश्यक २. दशवैकालिक ३. उत्तराध्ययनसूत्र ४. बृहत्कल्प ५. पंचकल्प ६. व्यवहार ७. निशीथ ८. जीतकल्प ६. ओघनियुक्ति और १०. पिण्डनियुक्ति।
उत्तराध्ययन भाष्य बहुत छोटा था। उसमें कुल ४५ गाथायें थीं। वर्तमान में यह स्वतन्त्र रूप में उपलब्ध नहीं है, किन्तु उसकी अनेक गाथायें नियुक्ति में समाहित हो चुकी हैं।
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