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उसमें 'गति' या प्रगति करना साधक का पुरूषार्थ है। इस अध्ययन में ३६ गाथायें -..
इसमें मोक्ष प्राप्ति के चार साधन बताये गए हैं : सम्यकज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप। वर्तमान में त्रिविध मोक्ष मार्ग की मान्यता प्रचलित है। जिसमें तप को चारित्र में समाहित कर लिया जाता है।
सर्वप्रथम इसमें मोक्ष प्राप्ति के प्रथम साधन ज्ञान के निम्न पांच प्रकारों का विवेचन किया गया है- मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव और केवल। ज्ञान का विषय ज्ञेय (वस्तु-तत्त्व) कहलाता है। ज्ञेय द्रव्य, गुण एवं पर्याय रूप होता है। धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव ये छ: द्रव्य हैं। अतः प्रस्तुत अध्ययन में इन षद्रव्यों तथा उनके गुण-पर्यायों का संक्षिप्त विवेचन है। फिर मोक्ष प्राप्ति के दूसरे साधन दर्शन का वर्णन है। यहां दर्शन शब्द मुख्यतः श्रद्धापरक अर्थ में स्वीकृत है। श्रद्धा का विषय नवतत्त्व है। ये नवतत्त्व - जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष हैं। नव तत्त्वों के निर्देश के पश्चात् प्रस्तुत अध्ययन में सम्यक्त्व के दस प्रकारों एवं आठ अंगों की चर्चा की गई है। आगे इसमें बताया है कि मोक्ष प्राप्ति का तीसरा साधन चारित्र - आचार है। उसके पांच प्रकार हैं - (७) सामायिक चारित्र;
(२) छेदोपस्थापनीय चारित्र; (३) परिहार विशुद्धि चारित्र; (४) सूक्ष्मसम्पराय चारित्र एवं (५) यथाख्यात चारित्र ।
अन्त में मोक्ष प्राप्ति के चतुर्थ साधन तप के बाह्य एवं आभ्यन्तर दो भेदों का उल्लेख है। तत्पश्चात् इन दोनों के छः छः विभेद का निर्देश है। इन १२ विभेदों की विस्तृत चर्चा 'तपोमार्गगति' नामक ३०वें अध्ययन में की गई है। .
... इसमें अनुभूतिरूप दर्शन की प्राथमिकता का वर्णन करते हुए कहा है कि दर्शन के बिना ज्ञान नहीं होता है। ज्ञान के बिना चारित्र नहीं होता है। ज्ञातव्य है कि उत्तराध्ययनसूत्र में अनुभूतिरूप अर्थ की अपेक्षा से दर्शन को प्रथम स्थान में तथा श्रद्धारूप अर्थ की अपेक्षा से उसे द्वितीय स्थान में रखा गया है।
अन्त में चतुर्विध साधनों का फल बतलाते हुए कहा है - जीव ज्ञान से पदार्थ को जानता है, दर्शन से श्रद्धा करता है; चारित्र से आत्मा का निग्रह करता
६५ 'नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तको तहा ।
एस मग्गो क्ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदंसिहिं ।।' ८६ उत्तराध्ययनसूत्र २८/३० ।
- उत्तराध्ययनसूत्र २८/२ ।
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