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________________ १०४ लौटकर आयें तब अपने आगमन की सूचना दें । अपने हर कार्य के लिए गुरू से अनुमति लें। गुरू या अन्य संघीय साधु की आहार आदि सेवा करें। भूल या प्रमाद से आसेवित दोषों को स्वीकार करें, गुरू के आने पर खड़े होकर उनका सम्मान करें तथा ज्ञानीजन या तपस्वीजन से ज्ञान एवं तप की शिक्षा लेने को सदैव तत्पर रहें। ___ तत्पश्चात् मुनि की दिनचर्या का समय के क्रम से विधान किया गया है। मुनि दिन के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे में ध्यान, तीसरे में भिक्षाचर्या एवं चौथे में पुनः स्वाध्याय करें। मुनि रात्रि के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे में ध्यान, तीसरे में निद्रा और चौथे में पुनः स्वाध्याय करें। अन्त में प्रहर का निर्धारण नक्षत्र के माध्यम से किस प्रकार होता है इसकी विधि तथा मुनि की. प्रतिलेखन विधि का भी विशद वर्णन किया गया है। इस प्रकार यह अध्ययन साधक की दिव्य साधना का सम्यक निरूपण करता है साथ ही कालमान की अनुपम विधि को भी प्रस्तुत करता है। २७. खलुंकीय : उत्तराध्ययनसूत्र का सत्तावीसवां अध्ययन खलुंकीय है। खलुंक का अर्थ है- दुष्ट बैल। इस अध्ययन में दुष्ट बैल के उदाहरणं के माध्यम से अविनीत शिष्य द्वारा गुरू को दिये जाने वाले दुःखों का चित्रण किया गया है। इसमें १७. गाथायें हैं। __ अनुशासन एवं विनय, ये साधक जीवन के अनिवार्य अंग हैं। अनुशासनहीन एवं अविनीत शिष्य गुरूजनों के लिये अत्यन्त कष्टकारक होते हैं। इसे स्पष्ट करने हेतु इसमें गार्याचार्य का उदाहरण दिया गया है । आचार्य गाठ एक विशिष्ट योग्य गुरू थे, किन्तु उनके शिष्य उद्दण्ड, अविनीत और स्वच्छन्द थे। अपने शिष्यों के अभद्र व्यवहार से आचार्य की समत्व-साधना में विघ्न आने लगा। अतः वे अपने शिष्यों को छोड़कर एकाकी चल दिये। इस प्रकार इस अध्ययन में उदाहरण सहित यह प्रेरणा दी गई है कि साधक को उन संयोगों एवं परिस्थितियों से सदा बचते रहना चाहिये जिनसे उनकी स्वयं की आत्मसमाधि भंग होती हो। २८. मोक्षमार्ग-गति : अट्ठाइसवें अध्ययन का नाम 'मोक्खमग्गगई''मोक्षमार्ग-गति' है। 'मोक्ष' साध्य है 'मार्ग' उसे पाने का साधन या उपाय है और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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