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________________ इसमें यह भी बताया गया है कि जो इच्छित वस्तु मिलने पर प्रसन्न नहीं होता है एवं न मिलने पर अप्रसन्न नहीं होता, वह भिक्षु है। इस प्रकार प्रस्तुत अध्ययन में मुनि के अनेक लक्षणों का विवेचन किया गया है। १६. ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान : इसमें ब्रह्मचर्य के पालन में हेतुभूत समाधि स्थानों का निरूपण किया गया है। अतः इस अध्ययन का नाम 'ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान' है। यह अध्ययन गद्य पद्यात्मक है। इसमें बताये गए ब्रह्मचर्यसमाधि के दस स्थान हैं - .. (१) निर्ग्रन्थ (ब्रह्मचारी) स्त्री, पशु एवं नपुंसक से युक्त स्थान पर निवास नहीं करेः .. (२) केवल स्त्रियों के बीच कथा वार्ता न करें; (३) स्त्रियों के साथ एक आसन पर नहीं बैठे; (४) स्त्रियों की ओर दृष्टि गड़ाकर नहीं देखे; (५) स्त्रियों के दुराशय से किये जाने वाले गायन, रोदन, हास्य, विलाप आदि का श्रवण न करे; (६) पूर्व क्रीड़ाओं का स्मरण न करे; (७) अतिगरिष्ट आहार न करे (८) मात्रा से अधिक भोजन एवं पानी ग्रहण न करे;. (६) शरीर की साज-सज्जा या विभूषा नहीं करे; और. (१०) इन्द्रियों के विषय-शब्द, रस, रूप, गन्ध एवं स्पर्श में आसक्त न बने । इस प्रकार इस अध्ययन में मनोवैज्ञानिक रूप से ब्रह्मचर्य की सुरक्षा की शिक्षा दी गई है और यह बताया गया है कि स्त्रीसम्पर्क, कामकथा, स्त्री पुरूष का एक आसन पर बैठना, पूर्व क्रीड़ा का स्मरण करना, सरस गरिष्ट एवं अति मात्रा में आहार करना, शरीर की विभूषा करना एवं इन्द्रियों के विषयों में आसक्ति रखना ब्रह्मचर्य की साधना में विघ्नकारक है। इस अध्ययन के उपसंहार में यह बताया गया है कि ब्रह्मचर्यधर्म ध्रुव, नित्य, शाश्वत एवं अर्हत् द्वारा प्ररूपित है तथा इसके पालन द्वारा अनेक जीव मुक्त हुए हैं, हो रहे हैं एवं होंगे। इस प्रकार यह अध्ययन ब्रह्मचर्यधर्म की सुरक्षा का मुख्य प्रेरणास्त्रोत है। १७. पाप-श्रमणीय : इस अध्ययन में पाप-श्रमण के स्वरूप का वर्णन है। अतः इस अध्ययन का नाम 'पावसमणिज्ज' रखा गया है। इसमें २१ गाथायें हैं। ७२ 'एस धम्मे थुवे निअए, सासए जिणदेसिए । सिद्धा सिझति चाणेण, सिझिस्सति तहावरे ।' - उत्तराध्ययनसूत्र १६/१७ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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