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________________ इस प्रकार इस अध्ययन में इन्द्र नमिराजा को अनेक प्रकार के कर्त्तव्यों की याद दिलाकर उन्हें विचलित करना चाहते हैं पर नमिराजर्षि प्रत्युत्तर में आत्मधर्म और आत्मकर्त्तव्य की सुन्दर, सटीक एवं सार्थक विवेचना करते हैं। यह अध्ययन अत्यन्त वैराग्योत्पादक एवं आध्यात्मिक प्रेरणा से युक्त है। १०. द्रुमपत्रक : प्रस्तुत अध्ययन का नाम द्रुमपत्रक है क्योंकि इस अध्ययन में वृक्ष के जीर्ण पत्ते का उदाहरण देकर जीवन की क्षणभंगुरता का बोध कराया है । इस अध्ययन की प्रत्येक गाथा के अन्त में गौतमस्वामी को सम्बोधित करते हुए प्रमाद त्याग की प्रेरणा दी गई है। यद्यपि यह सम्बोधन गौतमस्वामी को दिया गया है, परन्तु इसमें दिया गया उद्बोधन सभी के लिए है। इसमें जीव की विभिन्न गतियों में परिभ्रमण की स्थिति का वर्णन किया गया है। तत्पश्चात् मनुष्यजीवन, धर्मश्रवण, उस पर श्रद्धा और संयम में पुरूषार्थ की दुर्लभता का उल्लेख किया गया है। अन्त में शिथिल होते हुए शरीर और इन्द्रियों की दशा का चित्रणकर व्यक्ति को सदैव अप्रमत्त रहकर धर्मसाधना करने की प्रेरणा दी गई है। . इस अध्ययन की शैली से यह प्रतीत होता है कि इसमें भगवान महावीर के वचनों का शब्दशः संकलन किया गया है। उत्तराध्ययनसूत्र की प्राचीनता भी इस अध्ययन से सिद्ध होती है। अतः यह अध्ययन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। . . ११. बहुश्रुतपूजा : इस अध्ययन में 'बहुश्रुत' अर्थात् ज्ञानी की विशेषताओं का वर्णन किया गया है। अतः इसका 'बहुश्रुतपूजा' नाम सार्थक है। इसमे ३२ गाथायें . सर्वप्रथम अबहुश्रुत का वर्णन करते हुए इसमें कहा गया है कि विद्याहीन तो अबहुश्रुत है ही, साथ ही जो विद्यावान होकर भी अहंकारी, असंयमी एवं आसक्त है, वह भी अबहुश्रुत है। तत्पश्चात् इसमें शिक्षा प्राप्ति में बाधक एवं साधक बातों का वर्णन किया है। अविनीत एवं सुविनीत के लक्षणों का ६५ 'अह पंचहिं ठाणेहि, जेहिं सिक्खा न लब्बई । यंभा कोहा पमाएणं, रोगेणा 5 लस्सएण य ।। अह अहिं ठाणेहिं, सिक्खासीले त्ति वुच्चइ । अहस्सिरे सया दंते, न य मम्ममुदाहरे ।। नासीले न विसीले, न सिया अइलोलुए। अकोहणे सच्चरए, सिक्खासीले त्ति वुच्चई ।।' - उत्तराध्ययनसूत्र ११/३, ४ एवं ५। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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