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________________ ८८ दूसरे उदाहरण में यह बताया गया है कि एक रूग्ण राजा को चिकित्सक ने आम खाने का निषेध किया था। लेकिन एक दिन राजा जंगल में गया। वहां मीठे-मीठे आमों की सुगन्ध से वह मुग्ध हो गया और मंत्री के मना करने पर भी राजा ने आम खा लिया। परिणामतः वह मृत्यु को प्राप्त हुआ। सूत्रकार उपर्युक्त उदाहरणों द्वारा यह बताते हैं कि मनुष्य जीवन में प्राप्त होने वाले सुख तो कुश के अग्रभाग पर टिके हुए ओस के जल कण की तरह हैं और दिव्यसुख सागर की विशाल जलराशि के समान हैं। देवताओं के काम भोगों के समक्ष मनुष्य के कामभोग तुच्छ एवं अल्पकालीन हैं। अतः इनमें आसक्त नहीं होना चाहिये। जो व्यक्ति क्षणिक सुखों के पीछे विपुल सुखों को त्याग देता है वह उस मूर्ख के समान है जो मूल पूंजी ही खो बैठता है यथा - एक पिता ने अपने तीन पुत्रों को पूंजी देकर व्यापार के लिए भेजा। उनमें से एक व्यापार में बहुत धन कमाकर लौटा। दूसरा जितनी मूल पूंजी लेकर गया था उतनी वापस लेकर आया और तीसरा अपने पास की पूंजी को गवांकर आया। इस प्रकार मनुष्यगति को पुनः प्राप्त कर लेना मूल पूंजी सुरक्षित रखने के समान है। अपने सदाचरण से देवगति प्राप्त करना मूलधन की वृद्धि करना है और विषयवासना वश नरक या तिथंचगति प्राप्त करना मूलधन को गंवाना या नष्ट करना है। मनुष्यगति मूल पूंजी है। देवगति उसका लाभ और नरक तथा तिर्यच गति मूल को खोना है। उपसंहार में कहा गया है कि अज्ञानी जीव अधर्म के लिये धर्म का त्याग कर नरक में जाते हैं एवं धीर, विवेकी, ज्ञानी पुरूष अधर्म का त्याग कर देवगति को प्राप्त करते हैं। अतः मुनि को बालभाव त्यागकर ज्ञानियों के मार्ग का अनुसरण करना चाहिये । ८. कापिलीय : प्रस्तुत अध्ययन का नाम कापिलीय है। कपिलमुनि द्वारा उपदिष्ट होने के कारण इस अध्ययन का नाम कापिलीय पड़ा है। इसमें २० गाथायें हैं। पूर्वावस्था में कपिल ब्राह्मण था। एक बार वह एक दासी में अनुरक्त हो गया और ६३ 'माणुसत्तं भवे मूलं, लाभो देवगई भवे । मूलच्छेएण जीवाणं, नरगतिरिक्खत्तणं धुवं ।।' - उत्तराध्ययनसूत्र ७/१६ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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