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२.६ उत्तराध्ययनसूत्र की शैली
शैली से तात्पर्य किसी भी विधि, पद्धति, तरीका, ढंग, प्रणाली आदि से है, अंग्रेजी भाषा में शैली के लिए स्टाइल शब्द का प्रयोग होता है। साहित्य के क्षेत्र में भाषा के माध्यम से विचारों को प्रस्तुत करने की प्रणाली को शैली कहा जाता है। जैन आगम साहित्य में मुख्यतः गद्य, पद्य और चंपू इन तीन शैलियों का प्रयोग हुआ है। उत्तराध्ययनसूत्र की शैली गद्यात्मक एवं पद्यात्मक दोनों है, फिर भी इसमें पद्य शैली की प्रधानता है। इसकी शैली सरल, सहज, सरस एवं प्रवाहमयी है। इसके कुछ अध्ययनों में प्रश्नोत्तर शैली एवं रहस्यात्मक शैली का भी प्रयोग मिलता है। इसमें क्लिष्ट सामासिक शब्दावली का प्रायः अभाव पाया जाता है, विशेष सन्दर्भों में इसका कलात्मक सौष्ठव अनुपमेय है । अनेक प्रसंगों में, यथा नमिप्रव्रज्या आदि अध्ययनों में संवादात्मक शैली में भी विषय का प्रतिपादन किया गया है।
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शैली के सम्बन्ध में उत्तराध्ययनसूत्र की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें गम्भीर एवं गूढ़ सिद्धान्तों का भी उपमाओं एवं दृष्टान्तों के माध्यम से सरलीकरण कर दिया गया है। उपमाओं की बहुलता देखकर ही विण्टरनित्स आदि विद्वानों ने इसे 'श्रमणकाव्य ग्रन्थ' कहा है।
४२ (अ) 'दुमपत्तए पंडुयए जहा, निवडइ राइगणाण अच्चए । एवं मणुयाण जीवियं, समयं गोयम मा पमायए ।।' (ब) 'कुसग्गे जह ओसबिन्दुए, थोवं चिट्ठइ लम्बमाणए ।'
४३ ‘जहा य किंपागकला मनोरमा, रसेण वण्णेण य भुज्जमाणा । जीविय पच्चमाणा, एओवमा कामगुणा विवागे'
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२.६.१ उपदेशात्मक उपमा या दृष्टान्तों के द्वारा विषय का सरलीकरण
उत्तराध्ययनसूत्र में वैराग्योत्पादक उपमाओं की बहुलता है। जैसे. मनुष्य जीवन की तुलना पके हुए द्रुम-पत्र तथा कुश की नोंक पर स्थित ओसबिन्दु से की गई है। 12 इसी प्रकार कामभोगों को किम्पाक फल के समान बतलाया है जो देखने और खाने में तो मनोहर एवं मधुर होते हैं, किन्तु अन्ततः घातक (मृत्युरूप) होते हैं। इसी प्रकार कामभोग भोगकाल में सुखद प्रतीत होते हैं, किन्तु इनका परिणाम अत्यन्त दारूण (दुःखरूप ) होता है - इस बात को खुजली के उदाहरण से . समझाया गया है।
खुड्डए
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उत्तराध्ययनसूत्र १० / १ ।
- वही १० / २ ।
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. वही ३२ / २० ।
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