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(१) पालि प्राकृत (२) अर्धमागधी प्राकृत बौद्ध ग्रन्थ पालि भाषा में हैं तथा जैन आगम अर्धमागधी भाषा में निबद्ध हैं। .
तीर्थकर अर्धमागधी भाषा में बोलते थे। अर्धमागधी उस समय की जन सामान्य की भाषा थी। क्षेत्र की दृष्टि से अर्धमागधी उस भाषा का नाम है जो आधे मगध में अर्थात् मगध के पश्चिमी भाग में बोली जाती थी।
जैन आगमों में प्रयुक्त अर्धमागधी भाषा में मागधी के अतिरिक्त अन्य बोलियों के शब्दरूप तथा मागधी से भिन्न लक्षण भी पाये जाते हैं। अतः जैन आगमों की भाषा मागधी न कहलाकर अर्धमागधी कहलाती है।"
____ अर्धमागधी में व्यंजनों के लोप की प्रवृत्ति अल्प होती है। उसके क्रिया रूपों में 'ति' प्रत्यय यथावत् रहता है और प्रथमा विभक्ति में 'ओ' के स्थान पर 'ए' का प्रयोग होता है।
२.५.१ उत्तराध्ययनसूत्र की मूल भाषा : अर्धमागधी
जहां तक हमारे शोधग्रन्थ उत्तराध्ययनसूत्र का प्रश्न है, यह महाराष्ट्री प्रभावित अर्धमागधी भाषा का ग्रन्थ है। वस्तुतः वर्तमान में उपलब्ध आगम ग्रन्थों की भाषा प्रायः महाराष्ट्री प्रभावित प्राकृत ही है। यहां यह . विचारणीय है कि उत्तराध्ययनसूत्र की भाषा पर महाराष्ट्री भाषा का प्रभाव क्यों व कैसे पड़ा ?
२.५.२ उत्तराध्ययनसूत्र पर महाराष्ट्री प्राकृत का प्रभाव क्यों व कैसे ?
उत्तराध्ययनसूत्र ही नहीं प्रत्युत् वर्तमान में उपलब्ध सभी आगम ग्रन्थ प्रायः महाराष्ट्रीप्राकृत से प्रभावित हैं। आगमों के इस भाषा परिवर्तन के अनेक कारण
(१) वैदिकसंस्कृति शब्दप्रधान तथा श्रमणसंस्कृति अर्थप्रधान रही है अर्थात् वैदिकपरम्परा में अर्थ की अपेक्षा शब्द एवं ध्वनि को अधिक महत्त्वपूर्ण माना गया है। आज भी अनेक वेदपाठी ब्राह्मण ऐसे हैं, जो वेदमंत्रों के उच्चारण, लय आदि के विषय में निष्णात हैं, किन्तु वे उनके अर्थों को नहीं जानते हैं। यही कारण
४१ 'अर्धमागधी आगम साहित्य : एक विमर्श' - 'डॉ. सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ' पृष्ठ ३० ।
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