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हम उक्त दोनों विद्वानों के मंतव्य से इस सीमा तक सहमत हैं कि उत्तराध्ययनसूत्र के रचयिता आचार्य भद्रबाहु (प्रथम) नहीं हैं, किन्तु हमारी दृष्टि में इसके संकलनकर्ता के रूप में आचार्य भद्रबाहु को स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं हैं, क्योंकि यदि उत्तराध्ययनसूत्र एक संकलन ग्रन्थ है तो हमें इसके संकलनकर्ता के रूप में किसी न किसी आचार्य को स्वीकार करना होगा। पुनः जब हम यह मानते हैं कि उत्तराध्ययनसूत्र के कुछ अध्ययन बारहवें अंग दृष्टिवाद या पूर्व साहित्य से उद्धृत् हैं तो ऐसी स्थिति में हमें यह भी मानना होगा कि इसके संकलनकर्ता कोई न कोई पूर्वधर आचार्य होने चाहिये। चूंकि आचार्य भद्रबाहु को अन्तिम श्रुतकेवलि या पूर्वधर माना जाता है; अतः उनको उत्तराध्ययनसूत्र के संकलनकर्ता स्वीकार करने में सैद्धान्तिक रूप से कोई आपत्ति नहीं आती। पुनः हम यह देखते हैं कि उत्तराध्ययनसूत्र के इकत्तीसवें अध्ययन में दशा, कल्प एवं व्यवहार का निर्देश है और इनके कर्ता आचार्य भद्रबाहु (प्रथम) को निर्विवाद रूप से स्वीकार किया गया है। अतः हमें यह मानना होगा कि उत्तराध्ययनसूत्र के संकलनकर्ता आचार्य भद्रबाहु के पूर्ववर्ती पूर्वधर आचार्य न होकर या तो स्वय भद्रबाहु हैं या उनके परवर्ती अन्य कोई आचार्य हैं। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि उनके बाद पूर्वो की परम्परा अविच्छिन्न न रह सकी। अतः हम इस बात को निश्चितरूप से स्वीकार कर सकते हैं कि उत्तराध्ययनसूत्र के संकलनकर्ता आचार्य भद्रबाहु (प्रथम) हैं। आचार्य आत्माराम जी एवं मुनि नगराज जी दोनों ने यद्यपि 'भद्रबाहना प्रोक्तानि भद्रबाहवानि उत्तराध्ययनानि' इस पूर्वाचार्यों के वचन को उल्लिखित किया है। किन्तु उन्होंने कहीं भी यह संकेत नहीं दिया हैं कि यह कथन कहां से उद्धृत् है। हमने उत्तराध्ययनसूत्र की हमारे पास उपलब्ध जो टीका थी उसमें उक्त वाक्य को खोजने का प्रयास किया, किन्तु हमें उपलब्ध नहीं हो सका। सम्भवतः यह कथन किसी पूर्वाचार्य की टीका अथवा अन्य कृति में अवश्य रहा होगा । यदि इसका सम्पूर्ण सन्दर्भ ज्ञात हो जाता तो शायद इस समस्या के निराकरण में हमें पर्याप्त सहयोग मिल जाता पर उपर्युक्त चर्चा के आधार पर हम यह अवश्य कह सकते हैं कि चाहे उत्तराध्ययनसूत्र के विभिन्न अध्ययन भगवान महावीर, अन्य प्रत्येक बुद्धों एवं आचार्यों की कृतियां हों और चाहे उन्हें पूर्व साहित्य से उद्धृत किया गया हो, किन्तु यह मानने मे कोई कठिनाई नहीं है कि इसके संकलनकर्ता आचार्य भद्रबाहु रहे हों। फिर भी इस सन्दर्भ में
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