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________________ क्या उत्तराध्ययनसूत्र, आचार्य भद्रबाहु द्वारा रचित है ? कतिपय आचार्यों की यह अवधारणा रही है कि उत्तराध्ययनसूत्र के संकलनकर्ता आचार्य भद्रबाहु हैं। आचार्य आत्माराम जी ने उत्तराध्ययनसूत्र की भूमिका में तथा मुनि नगराजजी ने 'आगम और त्रिपिटक' में तथा 'जैनागमदिग्दर्शन' में यह उल्लेख किया है कि कुछ विद्वानों ने उत्तराध्ययनसूत्र के रचयिता आचार्य भद्रबाहु को माना है। इसके साथ ही आचार्य आत्माराम जी एवं मुनि नगराज जी दोनों ने विस्तार से इसका खण्डन भी किया है कि आचार्य भद्रबाहु उत्तराध्ययनसूत्र के व्याख्याता या प्रवक्ता हो सकते हैं, किन्तु उसके रचयिता नहीं । यहां हम उक्त दोनों विद्वानों के मंतव्यों को अविकल रूप से प्रस्तुत कर रहे हैं - सर्वप्रथम हम आचार्य आत्माराम जी के मंतव्य को उनके उत्तराध्ययनसूत्र की भूमिका के आधार पर प्रस्तुत कर रहे हैं, वे लिखते हैं कि ___"कितने एक विचारक सज्जनों का मत है कि उत्तराध्ययनसूत्र भी भद्रबाहुस्वामी की कृति है, इसीलिये इसका दूसरा नाम 'भद्रबाह्व' देखने में आता है। यथा- 'भद्रबाहुना प्रोक्तानि भाद्रबाह्वानि उत्तराध्ययनानि' अर्थात् भद्रबाहु प्रोक्त होने से उत्तराध्ययनसूत्र को भाद्रबाहव' कहते हैं। अतः इस कल्पना के लिये कि उत्तराध्ययनसूत्र भद्रबाहु स्वामी की कृति है, यह पूर्वोक्त प्रमाण अधिक बलवान् है। इस प्रमाण से उत्तराध्ययनसूत्र का भद्रबाहुस्वामी द्वारा रचा जाना अनायास ही सिद्ध हो जाता है। परन्तु जरा गम्भीरतापूर्वक विचार करने से उक्त कथन में कुछ भी सार प्रतीत नहीं होता। कारण कि 'प्रोक्त' और 'कृत' ये दोनों शब्द समान नहीं, किन्तु भिन्न-भिन्न अर्थ के वाचक हैं। इनमें प्रोक्त का अर्थ तो व्याख्यात और अध्यापित है तथा कृत का अर्थ नवीन रचना है। इसलिये भद्रबाहु प्रोक्त. का अर्थ भद्रबाहु की कृति या रचना विशेष नहीं, किन्तु उसके द्वारा प्रचारित होना अर्थ है। तात्पर्य यह कि भद्रबाहु स्वामी ने उत्तराध्ययनसूत्र की रचना नहीं की, किन्तु व्याख्यान और अध्यापन द्वारा जनता में इसका पर्याप्त रूप से प्रचार किया। उनके द्वारा किये जाने वाले विशिष्ट प्रचार के कारण ही यह उत्तराध्ययनसूत्र उनके नाम से विख्यात हो गया। इसलिये भद्रबाहुस्वामी उत्तराध्ययनसूत्र के प्रचारक मात्र थे, न कि रचयिता। इस बात को शाकटायन व्याकरण के (प्रकर्षेण व्याख्यातमध्यापितं वा प्रोक्तं तस्मिन् ट इति तृतीयान्ताद् यथाविहितं प्रत्ययो भवति। भद्रबाहुना प्रोक्तानि भद्रबाह्वानि उत्तराध्ययनानि।) 'टः प्रोक्ते ३।१।६६ सूत्र की वृत्ति में आचार्य यक्षवर्मा ने और हैमव्याकरण के (प्रकर्षेण व्याख्यातमध्यापित वा प्रोक्त नतु कृतम्। तत्र कृत इत्येव गतत्वात् तस्मिन्नर्थे तेनेति तृतीयान्तानाम्नो यथाविहितं प्रत्यया भवन्ति। भद्रबाहुना प्रोक्तानि भद्रबाहवानि उत्तराध्ययनानि गणधरप्रत्येकबुद्धादिभिः कृतानि तेन व्याख्यातानीत्यर्थः) । 'तेन प्रोक्ते ६।३।१८' सूत्र की बृहवृत्ति में आचार्य हेमचन्द्र ने विशेष रूप से स्पष्ट कर दिया है, अर्थात् इन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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