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________________ इस प्रकार हमारी मान्यता में उत्तराध्ययन सूत्र को मूलसूत्र मानने का सर्वाधिक श्रेष्ठ एवं समीचीन कारण यह प्रतीत होता है कि यह आगम श्रमण जीवन की मूलभूत आचार-संहिता को प्रस्तुत करता है । अतः मूलसूत्र अन्य है, यह मान्यता सभी मूल आगमों के साथ संगति भी रखती है। २. ३ उत्तराध्ययनसूत्र के उपदेष्टा या रचयिता के सम्बन्ध में विभिन्न अवधारणायें ६४ प्रत्येक कृति का कोई न कोई कर्ता अवश्य होता है, अतः यह प्रश्न उठना स्वभाविक है कि वस्तुतः 'उत्तराध्ययनसूत्र' का कर्ता कौन है ? " समवायांगसूत्र में 'छत्तीस उत्तरज्झयणा 30 नन्दीसूत्र में 'छत्तीस उत्तरज्झयणाई'' एवं स्वयं उत्तराध्ययनसूत्र की अन्तिम गाथा में छत्तीस उत्तरज्झाए, 32 ऐसे इसके बहुवचनात्मक नाम प्राप्त होते हैं। निर्युक्ति में भी उत्तराध्ययनसूत्र के बहुवचनात्मक नाम का ही प्रयोग मिलता है। इसी प्रकार चूर्णिकार ने यद्यपि उत्तराध्ययनसूत्र को छत्तीस अध्ययनों का एक श्रुतस्कन्ध अर्थात् एक ग्रन्थ स्वीकार किया है। फिर भी उन्होंने इसका नाम तो बहुवचनात्मक ही माना है। 34 इस प्रकार उत्तराध्ययनसूत्र का बहुवचनात्मक नाम इसे एक कर्ता की कृति या रचना मानने में सन्देह उत्पन्न करता है। इससे यह भी अनुमान लगाया जाता है कि उत्तराध्ययनसूत्र अनेक कर्ताओं की कृतियों / अध्ययनों से उद्धृत एक संकलित ग्रन्थ है। इस तथ्य की पुष्टि निर्युक्तिकार द्वारा कृत उत्तराध्ययनसूत्र कर्तृत्व विभाजन से होती है; जो निम्न प्रकार है १. अंगप्रभव (अंग आगमों से संकलित ); २. जिनभाषित; ३. प्रत्येकबुद्धभाषित; और ३० ‘समवायांगसूत्र', समवाय ३६ ३१ 'नन्दीसूत्र : सूत्र' ७८ ३२ 'उत्तराध्ययनसूत्र' ३६ / २६८ । ३३ ‘उत्तराध्ययननियुक्ति' गाथा ४ Jain Education International ३४ 'एतेसिं वेव छत्तीसाए उत्तरायणाणं समुदयसमितिसमागमेणं उत्तरायणाणि इमेहिं नामेहिं अणुगंतव्वाणि ।' ३५ उत्तराध्ययननियुक्ति गाथा ४ ('अंगसुत्ताणि', लाडनूं खण्ड प्रथम पृष्ठ ८८२) । ('नवसुत्ताणि' पृष्ठ २६७, लाडनूं) । - नियुक्ति संग्रह पृष्ठ ३६५ | उत्तरज्झयणभावसुतक्खंधोति लब्भ, ताणि पुण छत्तीसं उत्तराध्ययनसूत्र चूर्णि पत्र ८ । - निर्युक्तिसंग्रह पृष्ठ ३६५ । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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