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________________ हमारी मान्यता में उत्तरकाल वाची अर्थ अधिक तर्कसंगत प्रतीत होता है, क्योंकि यह अर्थ सम्पूर्ण ग्रन्थ के साथ व्याप्त है; जबकि द्वितीय अर्थ प्रश्नों के उत्तर रूप अध्ययन, उत्तराध्ययनसूत्र के कुछ ही अध्ययनों के साथ संगति रखता है सभी अध्ययनों के साथ नहीं । ६१ प्रो. ल्यूमेन (Prof. Leuman) ने उत्तराध्ययनसूत्र का सीधा शाब्दिक अर्थ परवर्ती अध्ययन किया है। उनके अनुसार इन अध्ययनों की रचना अंगआगम के पश्चात् उत्तरकाल में हुई है। अतः ये उत्तराध्ययनसूत्र के नाम से विश्रुत हुए । 21 कल्पना तथ्य संगत है; क्योंकि भाषाशास्त्रियों के अनुसार उत्तराध्ययनसूत्र की आदि के समान ही प्राचीन है। अतः आचारांग पश्चात् इसकी रचना को मानना निराधार नहीं है। प्रो. ल्यूमेन की यह २.२ उत्तराध्ययनसूत्र मूलसूत्र है, क्यों ? उत्तराध्ययनसूत्र को मूलसूत्रों के अन्तर्गत वर्गीकृत किया गया है। किन्तु इसके मूलसूत्र के रूप में वर्गीकृत किये जाने का कोई प्राचीन उल्लेख उपलब्ध नहीं होता है; न ही इसका व्याख्या साहित्य में मूलसूत्र कहे जाने का कोई आधार प्राप्त होता है। फिर भी लगभग तेरहवीं शती से इसे मूलसूत्रों में वर्गीकृत किये जाने की परम्परा है। इस सन्दर्भ में विद्वानों ने मूल शब्द की अनेक अनुमानिक व्याख्यायें भी की हैं - २१ उद्धृत् - 'जैनागमदिग्दर्शन'; पृष्ठ १३० मुनि नगराज जी । - पाश्चात्य विद्वानों की मान्यता जैन आगम साहित्य पर पाश्चात्य दार्शनिकों ने गवेषणापूर्ण कार्य किये हैं, यद्यपि उनके निष्कर्ष की प्रामाणिकता पर विचार करना स्वतन्त्र चिन्तन का विषय है । फिर भी उनके प्रयत्न एवं उत्साह अवश्य प्रशंसनीय हैं । उत्तराध्ययनसूत्र आदि मूलसूत्रों को 'मूल' कहने का आधार क्या है ? इस पर पाश्चात्य दार्शनिकों ने अनेक प्रकार से चिन्तन किया है। Jain Education International भाषा भी आचारांग आदि अंग आगमों के For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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