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________________ यह सन्देह हो सकता है कि यह घर मेरे मित्र का है या किसी दूसरे का? उस समय किसी जानकार व्यक्ति से पूछने पर प्रथम ज्ञान की सच्चाई मालूम हो जाती है। यहाँ ज्ञान की सच्चाई का पता दूसरे की सहायता से लगा, इसलिए यह परतः प्रामाण्य (5) प्रमाण के भेद-प्रमाण के भेद या संख्या के विषय में भी दर्शनों में मतभेद पाया जाता है। इन विभिन्न दर्शनों में एक से लेकर आठ तक प्रमाण के भेद माने गये हैं। विभिन्न दर्शनों द्वारा मान्य प्रमाणभेद एक प्रमाणवादी चार्वाक सम्प्रदाय केवल एक प्रत्यक्ष प्रमाण ही मानता है। इसीलिए वह परलोक आदि का निषेध करता है। द्विप्रमाणवादी बौद्ध तथा वैशेषिक प्रत्यक्ष और अनुमान-दो प्रमाण मानते हैं। त्रिप्रमाणवादी सांख्य और योग प्रत्यक्ष, अनुमान तथा आगम (शब्द)-इन तीन प्रमाणों को मानते हैं। चतुःप्रमाणवादी नैयायिक प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम और उपमान-इन चार प्रमाणों को मानते हैं। ____पंच प्रमाणवादी प्रभाकर-मीमांसक प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमान और अर्थापत्ति—इन पाँच प्रमाणों को मानते हैं। षट् प्रमाणवादी कुमारिल भट्ट-मीमांसक तथा वेदान्ती प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमान, अर्थापत्ति और अभाव इन छह प्रमाणों को मानते हैं। अष्ट प्रमाणवादी पौराणिक सम्प्रदाय प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमान, अर्थापत्ति, अभाव, सम्भव और ऐतिह्य-इन आठ प्रमाणों को मानता है।' जैनदर्शन सम्मत प्रमाणभेद जैनदर्शन में आचार्य उमास्वामी ने सम्यग्ज्ञान को प्रमाण बतलाते हुए प्रमाण के दो भेद किये हैं। 1. प्रत्यक्ष और 2. परोक्ष। जैनदर्शन का यह प्रमाण-भेद उनकी अपनी विशेष सूझ है। प्रमाण के इन प्रत्यक्ष और परोक्ष दो भेदों में ही उपरिनिर्दिष्ट अन्य दर्शनों द्वारा मान्य विभिन्न प्रमाण-भेदों का अन्तर्भाव बड़ी सुगमता से किया जा सकता है। उपयोगिता की दृष्टि से प्रत्येक वस्तु के भेद किये जाते हैं, किन्तु भेद उतने ही होने चाहिए जितने अपना स्वरुप स्वतन्त्र रूप से असंकीर्ण रख सकें। महान् दार्शनिक आचार्य समन्तभद्र ने सम्यग्ज्ञान रूप प्रमाण के अन्य प्रकार से भी दो भेद किये है-1.अक्रमभावि, 2. क्रमभावि। केवलज्ञान या आप्त ज्ञान तत्त्वाधिगम के उपाय :: 87 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004231
Book TitleJain Darshan me Nayvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhnandan Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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