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________________ नैगमनय के भेद-प्रभेद-नैगमनय बहुत व्यापक नय है। अतः इसकी व्यापकता को दर्शाने के लिए इस नय का विश्लेषण करना अत्यन्त आवश्यक है। इसका विषय द्रव्य, गुण व पर्याय तीनों हैं। जाति व व्यक्ति, शुद्ध व अशुद्ध द्रव्य, शुद्ध व अशुद्ध पर्याय, स्थूल व सूक्ष्म पर्याय, अर्थ व व्यंजन पर्याय सब कुछ इस नय के पेट में समाया हुआ है। अतः विषय की अपेक्षा से इसके अनेकों भेद-प्रभेद हो जाते हैं। ___ सर्वप्रथम इसके दो भेद किये गये हैं-समग्रग्राही और देशग्राही। समग्रग्राही नैगमनय सामान्य अंश का सहारा लेकर प्रवृत्त होता है। जैसे'यहाँ घड़ा है'। यहाँ काला-पीला, छोटा-बड़ा आदि विशेषण न लगाकर सामान्य रूप से घट मात्र का ग्रहण किया गया है। देशग्राही नैगमनय विशेष अंश का सहारा लेकर प्रवृत्त होता है। जैसे 'यह घड़ा मिट्टी का है; 'काला है' या 'छोटा है'। यहाँ घट की विशेष अवस्थाओं का ग्रहण किया गया है। काल की अपेक्षा से नैगमनय के तीन भेद हैं-भूत-नैगम, भावि-नैगम और वर्तमान-नैगम। भूत नैगम-अतीत काल में वर्तमान का संकल्प करना भूत नैगम है। जैसेआज दीपावली के दिन 'भगवान् महावीर मोक्ष गये थे।' आज का अर्थ-वर्तमान दिवस है। लेकिन उसका संकल्प हजारों वर्ष पहले के दिन में किया गया है। महावीर जयन्ती, कृष्णजन्माष्टमी, रामनवमी आदि भी इसी के उदाहरण हैं। ____ भाविनैगम-भविष्य में भूतकाल का संकल्प करना अथवा अनिष्पन्न भावि पदार्थ को निष्पन्नवत् कल्पना करना भावि नैगम नय है। जैसे-कुल्हाड़ा लेकर जाते हुए व्यक्ति से पूछने पर वह कह देता है कि प्रस्थ लेने जा रहा हूँ। यहाँ प्रस्थ पर्याय अभी बनी नहीं फिर भी केवल संकल्प के आधार पर उसे बनी हुई की तरह स्वीकार कर लिया गया है। ___ वर्तमान-नैगम-कोई कार्य प्रारम्भ कर दिया गया है परन्तु वह पूर्ण न हुआ हो फिर भी उसे पूर्ण हुआ कहना वर्तमान नैगम है। जैसे रसोई के प्रारम्भ में ही कह देना कि 'आज तो भात बनाया है।' अपेक्षा विशेष से नैगम नय के (1) पर्याय-नैगम, (2) द्रव्य-नैगम और (3) द्रव्य-पर्याय-नैगम इस प्रकार तीन भेद किये गये हैं। इनमें से पर्याय-नैगम के तीन भेद हैं, द्रव्य-नैगम के दो भेद हैं और द्रव्य-पर्याय नैगम के चार भेद हैं। इस प्रकार नैगम के कुल 9 भेद होते हैं। नैगम के नौ भेद और शेष छह नय मिलकर नय नयों का सैद्धान्तिक दृष्टिकोण तथा उनके भेद-प्रभेद :: 233 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004231
Book TitleJain Darshan me Nayvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhnandan Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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