________________
- किन्तु जैन दर्शन की मान्यता है कि पदार्थ न केवल सामान्य रूप है, न केवल विशेष रूप और न स्वतन्त्र परस्पर भिन्न और निरपेक्ष उभय रूप ही है; अपितु उभयात्मक (सामान्य-विशेषात्मक) है; क्योंकि सम्पूर्ण पदार्थ सामान्य-विशेष रूप ही अनुभव में आते हैं। जैसे–'गौ' के देखने पर जिस समय हमें खुर, ककुद, सास्ना (गल कम्बल) पूँछ, सींग आदि अवयवों वाली व्यक्ति रूप सब गौओं का सामान्य रूप से ज्ञान होता है, उसी समय भैंस आदि की व्यावृत्ति (निराकरण) रूप विशेष-ज्ञान भी होता है, अतएव सांख्य, वेदान्ती, मीमांसक आदि को केवल सामान्य को ही तत्त्व न मानकर पदार्थों को सामान्य-विशेषात्मक ही मानना चाहिए।
इसी प्रकार शबला (चितकबरी) गौ का विशेष ज्ञान होने पर भी 'गोत्व' सामान्य का स्पष्ट रूप से ज्ञान होता है, क्योंकि शबला कहने पर 'गोत्व' सामान्य का ज्ञान अवश्य होता है तथा शबलत्व भी अनेक प्रकार का है, अतएव वक्ता के 'गौ' को शबला कहने पर सम्पूर्ण गौओं में शबलत्व का सामान्य से ग्रहण होने पर भी विवक्षित गौओं में ही शबलत्व का ज्ञान होता है अतएव सामान्य और विशेष परस्पर-सापेक्ष हैं। बिना सामान्य के विशेष और बिना विशेष के सामान्य कहीं भी, कभी भी नहीं पाये जाते; अतएव विशेष-निरपेक्ष सामान्य को अथवा सामान्यनिरपेक्ष विशेष को तत्त्व मानना केवल प्रलाप मात्र है। जिस प्रकार जन्मान्ध पुरुष हाथी के एक-एक अवयव को स्पर्श करके हाथी का जुदा-जुदा स्वरूप सिद्ध करते हैं अर्थात् एक-एक अवयव को ही हाथी मानते हैं-जिसने पैर को स्पर्श किया वह खम्भे के आकार का ही हाथी मानता है और जिसने कान का स्पर्श किया वह कहता है कि हाथी सूप के आकार का ही है इत्यादि रूप से एक-एक अवयव को ही हाथी मानते हैं, उसी प्रकार सर्वथा एकान्तवादी वस्तु का स्वरूप एक-एक अपेक्षा को ग्रहण करके भिन्न-भिन्न सिद्ध करते हैं, किन्तु यह मान्यता एकांगी होने से वस्तुस्वरूप की सिद्धि करने में सर्वथा असमर्थ है। अतएव वस्तु को केवल विशेष रूप ही न मानकर परस्पर सापेक्ष सामान्य-विशेषात्मक ही मानना चाहिए।
इसी प्रकार सामान्य और विशेष को परस्पर भिन्न और निरपेक्ष मानने वाले नैयायिक और वैशेषिकों की मान्यता भी ठीक नहीं है; क्योंकि विसदृश परिणाम की तरह सामान्य व्यक्ति विशेष से कथंचित् भिन्न और कथंचित् अभिन्न है। जैसे-किसी व्यक्ति के अन्य व्यक्तियों से विशेष रूप प्रतिभासित होने पर उसमें विसदृश परिणाम देखा जाता है, वैसे ही भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में सामान्य रूप देखे जाने से सदृश परिणाम भी पाया जाता है। उदाहरण के लिए गौ व्यक्ति के अश्व आदि व्यक्तियों से असमान होने पर गौ में विसदृश परिणाम तथा गौ में गोत्व
222 :: जैनदर्शन में नयवाद
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org