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________________ सामान्य के रहने से सदृश परिणाम पाया जाता है। अतएव सामान्य और विशेष परस्पर सापेक्ष हैं, क्योंकि सामान्य विशेष से सर्वथा भिन्न नहीं है और न ही विशेष सामान्य से सर्वथा भिन्न है। वैसे जैनदर्शन के सापेक्ष दृष्टिकोण से उक्त दार्शनिकों की मान्यताएँ कथंचित् सत्य भी हैं, सर्वथा सत्य नहीं। वस्तु को सर्वथा सामान्य रूप मानने वाले सांख्य, अद्वैतवादी, मीमांसकों का कथन द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से, वस्तु को सर्वथा विशेष रूप मानने वाले बौद्धों का कथन पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा से तथा सामान्य-विशेष को परस्पर भिन्न और निरपेक्ष मानने वाले न्याय-वैशेषिकों का कथन नैगमनय की अपेक्षा से सत्य है। इसलिए सामान्य-विशेष को कथंचित् भिन्न और कथंचित् अभिन्न ही स्वीकार करना चाहिए; क्योंकि पदार्थों का ज्ञान करते समय सामान्य और विशेष दोनों का ही एक साथ ज्ञान होता है। बिना सामान्य के विशेष और बिना विशेष के सामान्य का कहीं भी ज्ञान नहीं होता। जैसे गौ के देखने पर हमें अनुवृत्ति रूप गौ का ज्ञान होता है, वैसे ही भैंस आदि की व्यावृत्ति रूप विशेष का भी ज्ञान होता है। इसी तरह शबला गौ कहने पर जैसे विशेष रूप शबलत्व का ज्ञान होता है, वैसे ही 'गोत्व' रूप सामान्य का भी ज्ञान होता है। अतएव सामान्य-विशेष कथंचित् भिन्न और कथंचित् अभिन्न होने से प्रत्येक पदार्थ सामान्य विशेषात्मक दोनों रूप ही है। ____ अनेक अर्थों में रहने वाली एकता को सामान्य कहते हैं और एक अर्थ में रहने वाली अनेकता को विशेष कहते हैं। अर्थात् अनेक पदार्थों में एक सी प्रतीति उत्पन्न करने वाला और उन्हें एक ही शब्द का वाच्य बनाने वाला धर्म सामान्य कहलाता है। जैसे-अनेक गायों में यह भी गौ है, 'यह भी गौ है', इस प्रकार का ज्ञान और शब्द प्रयोग कराने वाला 'गोत्व धर्म' सामान्य है। इससे विपरीत एक पदार्थ से दूसरे पदार्थ में भेद कराने वाला धर्म विशेष कहलाता है। जैसे-उन्हीं अनेक गायों में नीलापन, शाबलेयत्व (चितकबरापन), ललाई, सफेदी आदि। जिन पदार्थों में एक दृष्टि से हमें सदृशता (समानता) की प्रतीति होती है उन्हीं पदार्थों में दूसरी दृष्टि से विसदृशता (विशेष) की प्रतीति भी होने लगती है। दृष्टि में भेद होने पर भी जब तक पदार्थ में सदृशता और विसदृशता न हो तब तक उनकी प्रतीति नहीं हो सकती है। इससे सिद्ध होता है कि पदार्थ में सदृशता या समानता की प्रतीति उत्पन्न करने वाला सामान्य है। जैसे-अनेक गायों में 'यह गौ है, यह भी गौ है, यह भी गौ है; इस प्रकार की सदृश या समान आकार वाली प्रतीति सामान्य है, इसी को अनुवृत्त प्रत्यय कहते हैं और विसदृशता की प्रतीति उत्पन्न करने वाला धर्म विशेष है; जैसे–'यह गाय काली है', 'यह चितकबरी है' नयों का सैद्धान्तिक दृष्टिकोण तथा उनके भेद-प्रभेद :: 223 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004231
Book TitleJain Darshan me Nayvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhnandan Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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