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नयों का सैद्धान्तिक दृष्टिकोण तथा उनके भेद-प्रभेद
नयों का सैद्धान्तिक दृष्टिकोण जैनागम ग्रन्थों में नयों का विवेचन दो दृष्टियों से किया गया है-एक सैद्धान्तिक दृष्टि से और दूसरा आध्यात्मिक दृष्टि से।
सैद्धान्तिक दृष्टि से जीव, अजीव आदि समस्त पदार्थों का सामान्य कथन अर्थात् द्रव्य सामान्य सम्बन्धी सिद्धान्त का विवेचन किया गया है। इस दृष्टि में जीव द्रव्य की कुछ प्रधानता या मुख्यता और अन्य द्रव्यों की अप्रधानता या गौणता सम्भव नहीं। यहाँ सभी पदार्थ एक ही कोटि में हैं। उनको जानना मात्र या उनका ठीकठीक परिज्ञान करना मात्र अपेक्षित है। उनमें कौन पदार्थ हेय है और कौन उपादेय है यह बताना इसका प्रयोजन नहीं है। इसीलिए इस पद्धति में नयों के नाम भी वस्तु के स्वभाव का आश्रय करके रखे गये हैं। जैसे द्रव्यार्थिक, पर्यायार्थिक, भेद-ग्राहक, अभेद-ग्राहक आदि। __. आध्यात्मिक दृष्टि में केवल आत्मा अर्थात् जीव द्रव्य का ही कथन करना . प्रमुख है। यहाँ केवल नयों का सैद्धान्तिक दृष्टिकोण विवेचनीय है अर्थात् सैद्धान्तिक
दृष्टिकोण से नयों के द्वारा किस प्रकार वस्तुतत्त्व का प्रतिपादन किया गया है ? हम किस प्रकार उसके स्वरूप को समझ सकते हैं ? यह सब विवेचन करना सैद्धान्तिक दृष्टि का काम है। क्योंकि नयों का सैद्धान्तिक दृष्टिकोण बताये बिना या उसे समझे बिना द्रव्य-सामान्य-सम्बन्धी परिचय प्राप्त नहीं कर सकते और द्रव्य-सामान्यसम्बन्धी परिचय का ज्ञान प्राप्त किये बिना द्रव्य-विशेष अर्थात् आत्म पदार्थ का तथा उसके लिए हेय व उपादेय का निर्णय नहीं कर सकते। आत्मा का स्वरूप क्या है ? उसका भला किस बात में है? यह सब परिज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते। अतः सैद्धान्तिक दृष्टि को समझना आवश्यक है।
सैद्धान्तिक दृष्टि से विचार करने पर द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक ये दो ही मूल नय हैं और उनके नैगमादि सात भेद किये गये हैं। जब वस्तु द्रव्य पर्यायात्मक
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