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ही इसी 'हाँ' और 'नहीं' या 'विधि' और 'निषेध' के औचित्य को लेकर हुई है।
'सप्तभंगी' का व्युत्पत्तिपरक सामान्य अर्थ है-'वचन के सात प्रकारों का एक समुदाय' 76 जैसे-'तीन लोकों के समूह को त्रिलोकी 277 और आठ सहस्रोंहजारों के समूह को 'अष्टसहस्री 278 कहते हैं इसी प्रकार सात भंगों या वचन प्रकारों के समूह को 'सप्तभंगी' कहते हैं। ___'भंग' शब्द के भाग, लहर, प्रकार, विघ्न आदि अनेक अर्थ होते हैं, इनमें से यहाँ दार्शनिक विषय होने के कारण ‘प्रकार' वाचक 'भंग' शब्द लिया गया है। इसके अनुसार वचन के सात भंगों या प्रकारों के समूह को 'सप्तभंगी' कहते हैं। जैन दर्शन में सप्तभंगी की परिभाषा इस प्रकार है-किसी वस्तु का उसके एक धर्म को लेकर सत् या असत्, भाव या अभाव रूप से जो वास्तविक कथन किया जाता है उसे भंग कहते हैं। ऐसे 'भंग' मूल में दो और ज्यादा हुआ तो तीन हैं, परन्तु इस भंग रूप वाक्यों के एक-दूसरे के संयोग से सात वाक्य बनते हैं। यही सात प्रकार की वाक्य रचना 'सप्तभंगी' कहलाती है अथवा प्रश्न के वश से एक वस्तु में प्रत्यक्ष और अनुमान प्रमाण के अविरोध रूप से विधि-निषेध या अस्ति-नास्ति की कल्पना को 'सप्तभंगी' कहते हैं।79
इसी प्रकार एक ही वस्तु में किसी एक धर्म या गुण सम्बन्धी प्रश्न के अनुरोध से सात प्रकार के वचन-प्रयोग को 'सप्तभंगी' कहते हैं। वह वचन 'स्यात्' पद से युक्त होता है और उसमें कहीं 'विधि की विवक्षा होती है, कहीं निषेध की और कहीं विधि-निषेध दोनों की 280 • जगत् की प्रत्येक वस्तु में सत्-असत्, अस्ति-नास्ति आदि अनन्त धर्म पाये जाते हैं। इन अनन्त धर्मों का पिण्ड ही तो वस्तु है। इन अनन्त धर्मों में से किसी एक धर्म को लेकर जब विचार किया जाय कि अमुक धर्म सत् रूप है या असत् रूप? या सत्-असत् उभय रूप? या अनुभय (अवक्तव्य) रूप? तब प्रश्नों के अनुसार उस एक धर्म के विषय में सात प्रकार के उत्तर हो सकते हैं। प्रत्येक उत्तर के साथ स्यात्' (कथंचित् या किसी अपेक्षा से) पद जुड़ा होगा। कोई उत्तर विधिरूप-(हाँ) में होगा और कोई उत्तर ‘निषेधरूप' (नहीं) में होगा। इस तरह सात प्रकार के उत्तर या वचन प्रयोग को 'सप्तभंगी' कहते हैं। इस सप्तभंगी से हमें यह ज्ञात हो जाता है कि पदार्थ या वस्तु में धर्म किस प्रकार रहते हैं। इसके स्वरूप में यह भी बताया गया है कि एक ही धर्म के विषय में सात प्रकार के वचन प्रयोग को 'सप्तभंगी' कहते हैं। जैसे-घट पदार्थ के एक 'अस्तित्व' धर्म को लेकर सात भंग इस प्रकार होते हैं-(1) स्यादस्ति घटः, (2) स्यान्नास्ति घटः, (3) स्यादस्ति-नास्ति घटः, (4) स्यादवक्तव्यो घटः, (5) स्यादस्ति अवक्तव्यो घटः,
तत्त्वाधिगम के उपाय :: 171
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