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विश्व के अन्य सभी दर्शन एकान्तवादी हैं। वे वस्तु को एक धर्मात्मक ही मानते हैं, विरुद्ध उभय धर्मात्मक नहीं मानते। इसीलिए उनमें प्रमाण के सिवाय अंशग्राहीरूप से नय की कोई चर्चा ही नहीं है; किन्तु अनेकान्तवादी जैनदर्शन का काम नय के बिना चल ही नहीं सकता, क्योंकि अनेकान्त का मूल नय है। नय का विषय एकान्त है, इसलिए नय को एकान्त भी कहते हैं और एकान्तों के समूह का नाम अनेकान्त है। अतः एकान्त के बिना अनेकान्त सम्भव नहीं है। जो वस्तु प्रमाण की दृष्टि में अनेकान्त रूप है, वही वस्तु नय की दृष्टि में एकान्त स्वरूप है। अतः नय के बिना अनेकान्त सम्भव नहीं है।
प्रमाण और नय से अनेकान्त स्वरूप वस्तु की सिद्धि होती है। प्रमाण वस्तु के सभी धर्मों को विषय करने वाला है और नय वस्तु के उन धर्मों में से किसी एक धर्म को विषय करने वाला है। प्रमाण की अपेक्षा से अनेकान्त अनेकान्त-स्वरूप है। अर्थात् अनेक धर्मस्वरूप वस्तु अनेक धर्मस्वरूप ही दिखती है। वही अनेकान्तस्वरूप वस्तु जब किसी विशेष नय की अपेक्षा से देखी जाती है तब किसी एक धर्मस्वरूप दिखती है, इस तरह वस्तु-स्वरूप को अपेक्षा-सहित मानने से या वस्तुस्वरूप का सापेक्ष कथन करने से कोई विरोध नहीं आता है। अपेक्षा रहित अनेकान्त व एकान्त सब सदोष होते हैं। वस्तु नित्यानित्यात्मक, एकानेकात्मक, भेदाभेदात्मक, सामान्य-विशेषात्मक आदि अनेक धर्मस्वरूप है। इसी वस्तुस्वरूप को समझने के लिए जैनदर्शन में प्रमाण और नय ये दो साधन माने गये हैं। प्रमाण की अपेक्षा वस्तु अनेक धर्मस्वरूप झलकती है और नय की अपेक्षा एक-एक धर्मस्वरूप। नय वस्तुस्वरूप को वस्तु के किसी एक धर्म को मुख्य करके और उसी समय उसके अन्य धर्मों को गौण करके बताता है। वह वस्तु के एक धर्म को मुख्य करके कहते हुए उसके अन्य धर्मों का निषेध नहीं करता है। इस प्रकार जैनदर्शन में स्याद्वाद और नय पद्धति से निर्बाध वस्तु-स्वरूप की सिद्धि होती है। ___नय की उपयोगिता बतलाते हुए श्री माइल्ल धवल ने कहा है, 'अनेक स्वभावों से परिपूर्ण वस्तु को प्रमाण के द्वारा ग्रहण करके तत्पश्चात् एकान्तवाद का नाश करने के लिए नयों की योजना करनी चाहिए।' . . इसी बात को आचार्य देवसेन ने भी कहा है; 'नाना स्वभावों (धर्मों) से युक्त द्रव्य को प्रमाण के द्वारा जान करके सापेक्ष सिद्धि के लिए उसमें नयों की योजना करनी चाहिए।"
श्री माइल्ल धवल पुनः कहते हैं, 'नय के बिना मनुष्य को स्याद्वाद का बोध नहीं हो सकता, इसलिए जो एकान्त का विरोध करना चाहता है उसे नय को जानना चाहिए। एकान्त का विरोध करने के लिए नय-ज्ञान आवश्यक है।
नयवाद की पृष्ठभूमि :: 15
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