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________________ प्रशंसा, अस्तित्व, विवाद, अनेकान्त, संशय, विधि, विचार, प्रश्नादि अनेक अर्थ होते हैं, परन्तु जैनदर्शन में इसका प्रयोग अनेकान्त के अर्थ में किया गया है, जो 'कथंचित्', 'किसी अपेक्षा से' या 'किसी दृष्टि से' इस अर्थ का द्योतक है।266 'वाद' का अर्थ है सिद्धान्त, मत, कथन या प्रतिपादन। इस प्रकार 'स्यादवाद' का अर्थ हुआ किसी अपेक्षा या दृष्टिकोण से कथन या प्रतिपादन करना। इसी व्युत्पत्ति. के आधार पर स्याद्वाद को सापेक्ष सिद्धान्त, अपेक्षावाद या कथंचित्वाद भी कहा जाता है। यद्यपि संस्कृत व्याकरण267 के अनुसार विधिलिङ्लकार में अदादि गणी 'अस्' भुवि धातु से 'स्यात्' यह क्रिया रूप पद भी सिद्ध होता है, जिसका अर्थ होता है-'होना चाहिए।' परन्तु स्याद्वाद में जो 'स्यात्' पद है वह क्रिया रूप नहीं है, किन्तु संस्कृत के 'एव', 'च' आदि शब्दों की तरह निपातरूप अव्यय है। निपात रूप 'स्यात्' शब्द के भी अनेक अर्थ होते हैं जैसे कि ऊपर बताये गये हैं, उनमें से एक अर्थ संशय भी है। जैसे 'स्यात् अस्ति' शायद है। किन्तु स्याद्वाद में प्रयुक्त स्यात् शब्द संशयवाची नहीं है, उसका अर्थ शायद नहीं है। वह तो अनेकान्त का द्योतक अथवा सूचक है ।268 वाक्य के साथ उसे सम्बद्ध कर देने से वह प्रकृत्त अर्थ का पूरी तरह से सूचन करता है; क्योंकि प्रायः निपातों का यही स्वभाव होता है तथा निपात द्योतक भी होते हैं और वाचक भी। अतः 'स्यात्' शब्द अनेकान्त का द्योतक है ।26 इस प्रकार अनेकान्त के द्योतन के लिए सभी वाक्यों के साथ 'स्यात्' शब्द का प्रयोग आवश्यक है। उसके बिना अनेकान्त का प्रकाशन सम्भव नहीं है। जैसे-'स्यात् अस्ति' इस वाक्य में 'अस्ति' पद अस्तित्व धर्म का वाचक है और 'स्यात्' शब्द अनेकान्त का। आचार्य समन्तभद्र भी अर्हद्-भक्ति के माध्यम से 'स्यात्' शब्द के विषय में कहते हैं ___ 'हे अर्हन् ! आपके तथा केवलियों के भी वाक्यों में प्रयुक्त होने वाला 'स्यात्' निपात (अव्यय) शब्द अर्थ के साथ सम्बद्ध होने से अनेकान्त का द्योतक और गम्य यानी बोध्य का बोधक माना गया है। अन्यथा अनेकान्त अर्थ की प्रतिपत्ति नहीं बनती।70 इस प्रकार आचार्य समन्तभद्र 'स्यात्' शब्द को अनेकान्त का बोधक निपात रूप शब्द मानते हैं। 'स्यात्' शब्द के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करते हुए आचार्य अमृतचन्द्र भी कहते हैं-'स्यात्' पद विधिलिङ् में बना हुआ तिङन्त प्रतिरूपक निपात है। यह सर्वथापने का निषेधक अनेकान्त का द्योतक और कथंचित् अर्थ का बोधक है। कुछ लोग272 'स्यात्' शब्द की निष्पत्ति अदादिगणी 'अस्' धातु के विधिलिङ् 160 :: जैनदर्शन में नयवाद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004231
Book TitleJain Darshan me Nayvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhnandan Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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