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वह भी मन का ही विषय है। श्रुत का मनन या चिन्तनात्मक जितना भी ज्ञान होता है उसकी गणना श्रुतज्ञान में है। श्रुतज्ञान को मतिज्ञानपूर्वक माना जाता है। इन दोनों का कारण कार्य सम्बन्ध है मतिज्ञान कारण और श्रुतज्ञान कार्य है। ____ मतिज्ञान की अपेक्षा श्रुतज्ञान का विषय महान् है; क्योंकि उसमें जिन विषयों का वर्णन किया गया है अथवा उसके द्वारा जिन विषयों का ज्ञान होता है, वे ज्ञेय (प्रमेय) रूप विषय अनन्त हैं, तथा उसका प्रणयन या निरूपण सर्वज्ञ के द्वारा हुआ है, उसका विषय अतिशय महान् है, इसलिए उसके एक-एक अर्थ को लेकर अधिकारों की रचना की गयी है और तत्तत् अधिकारों के प्रकरण की समाप्ति की अपेक्षा से उसके अंग और उपांग रूप में नाना भेद हो गये हैं। ___मतिज्ञान केवल वर्तमानकाल सम्बन्धी पदार्थों को जानता है जबकि श्रुतज्ञान भूत, भविष्यत्, वर्तमान काल सम्बन्धी पदार्थों को जानता है।
मतिज्ञान की अपेक्षा श्रुतज्ञान अधिक विशुद्ध है। मतिज्ञान इन्द्रिय निमित्तक हो अथवा अनिन्द्रिय निमित्तक, आत्मा की ज्ञस्वभावता के कारण वह पारिणामिक है, परन्तु श्रुतज्ञान ऐसा नहीं है; क्योंकि वह आप्त के उपदेश से मतिज्ञानपूर्वक हुआ करता है।
जैसे मतिज्ञान की उत्पत्ति में इन्द्रियाँ साक्षात् निमित्त होती हैं वैसे श्रुतज्ञान की उत्पत्ति में साक्षात् निमित्त नहीं होती इसलिए श्रुतज्ञान की उत्पत्ति इन्द्रियों से न मानकर मन से ही मानी गयी है। तथापि स्पर्शन आदि इन्द्रियों के निमित्त से मतिज्ञान होने के बाद जो श्रुतज्ञान होता है उसमें परम्परा से वे स्पर्शन आदि इन्द्रियाँ निमित्त मानी गयी हैं, इसलिए मतिज्ञान के समान श्रुतज्ञान की उत्पत्ति भी पाँच इन्द्रिय और मन के निमित्त से कही जाती है पर यह कथन औपचारिक है।
इस प्रकार श्रुत का मनन या चिन्तनात्मक जितना भी ज्ञान होता है वह तो श्रुतज्ञान है ही, किन्तु उसके साथ उस जाति का जो अन्य ज्ञान होता है उसे भी श्रुतज्ञान मानना चाहिए। श्रुतज्ञान के अक्षरात्मक और अनक्षरात्मक ऐसे जो दो भेद किये गये हैं वे इसी आधार से किये गये हैं। अंगबाह्य और अङ्ग-प्रविष्ट ये भी श्रुत के दो भेद हैं। इनमें अंगबाह्य के अनेक भेद हैं और अङ्ग-प्रविष्ट के आचाराङ्ग आदि बारह भेद हैं। श्रुतज्ञान का विशेष वर्णन धवलादि ग्रन्थों से जानना चाहिए।
पारमार्थिक या मुख्य प्रत्यक्ष जो ज्ञान आत्मा से ही उत्पन्न होता है उसे पारमार्थिक या मुख्य प्रत्यक्ष कहते हैं।
तत्त्वाधिगम के उपाय :: 107
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