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निषेध करता है तो यह उत्तरीय है' यह अवाय अर्थात् ज्ञान करता है। और जब 'यह उत्तरीय है' यह ज्ञान करता है तब यह दाक्षिणात्य नहीं है' यह अपाय अर्थात् निषेध करता है।
4. धारणा-अवाय से निर्णीत वस्तु को कालान्तर में न भूलने में जो ज्ञान कारण है उसे धारणा कहते है। जैसे अवाय से यह निश्चय हो गया था कि यह दाक्षिणात्य ही है' इसको कालान्तर में न भूलने में जो ज्ञान कारण होता है उसे धारणा कहते हैं। धारणा का मतलब प्रतिपत्ति है। अर्थात् अपने योग्य पदार्थ का जो बोध हुआ है, उसका अधिक काल तक स्थिर रहना धारणा है। यह धारणा ही स्मृति आदि ज्ञानों की जननी है। जिस पदार्थ का धारणा ज्ञान नहीं होता उसका कालान्तर में स्मरण भी सम्भव नहीं है। धारणा का अर्थ संस्कार भी है। यह ज्ञान हृदय-पटल पर इस प्रकार अंकित हो जाता है कि कालान्तर में भी वह जाग्रत हो सकता है।
धारणा, प्रतिपत्ति, अवधारणा, अवस्थान, निश्चय, अवगम और अवबोध ये सब शब्द एक ही अर्थ के वाचक हैं। अर्थात् धारणा शब्द के पर्यायवाची हैं।
ये अवग्रह आदि चारों ज्ञान इसी क्रम से होते हैं। इनकी उत्पत्ति में कोई व्यतिक्रम नहीं होता; क्योंकि अदृष्ट का अवग्रह नहीं होता, अनवगृहीत में सन्देह नहीं होता, सन्देह हुए बिना ईहा नहीं होती, ईहा के बिना अवाय नहीं होता और
अवाय के बिना धारणा नहीं होती। किन्तु जैसे कमल के सौ पत्तों को ऊपर नीचे रखकर सुई से छेदने पर ऐसी प्रतीति होती है कि सारे पत्ते एक ही समय में छेदे गये। यद्यपि वहाँ काल-भेद है, किन्तु अत्यन्त सूक्ष्म होने से हमारी दृष्टि में नहीं आता, वैसे ही अभ्यस्त विषय में यद्यपि केवल अवाय-ज्ञान की ही प्रतीति होती है फिर भी उससे पहले अवग्रह और ईहा ज्ञान बड़ी द्रुतगति से हो जाते हैं, इससे उनकी प्रतीति नहीं होती। आशय यह है कि पहले दर्शन, फिर अवग्रह, फिर सन्देह, फिर ईहा, फिर अवाय और तदनन्तर धारणा ज्ञान उत्पन्न होता है। यही अनुभव का क्रम है। यदि इस क्रम को स्वीकार न किया जाय तो किसी भी पदार्थ का ज्ञान होना असम्भव है; क्योंकि जब तक दर्शन के द्वारा पदार्थ की सत्ता का आभास नहीं हो तब तक मनुष्यत्व आदि अवान्तर सामान्य ज्ञात नहीं होंगे, अवान्तर सामान्य के ज्ञान बिना 'यह दक्षिणी है या पश्चिमी' इस प्रकार का सन्देह उत्पन्न नहीं होगा, सन्देह के बिना 'यह दक्षिणी होना चाहिए' इस प्रकार का ईहा ज्ञान नहीं होगा, इसी प्रकार अगले ज्ञानों का भी अभाव हो जाएगा। अत: दर्शन, अवग्रह आदि का उक्त क्रम ही मानना युक्ति और अनुभव से संगत है।
तत्त्वाधिगम के उपाय :: 99
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