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________________ 61... कहीं मुना न जाए सुलसा तापसी रात्रि में ऋषिदत्ता का मुँह खून से रंगकर उस पर अवस्वापिनी निद्रा डालकर राजा व मंत्रियों के दिमाग में इस बात को बिठाने के लिये उनके पास गई। विशेष विश्वास जमाने के लिए कपटपटु उसने राजा से कहा कि आप यदि अभयदान दें, तो मैं सारी हकीकत बताऊं। राजा के स्वीकार करने पर उसने राजा से कहा कि आप स्वयं ऋषिदत्ता के पास जाकर देखिये। राजा वहाँ गया और उसने वही स्थिति देखी। देखते ही राजा के दिमाग का पारा चढ़ गया। अरर ! यह तो ऋषिदत्ता का ही सारा षड्यंत्र है। छुरी से मार कर यही रोज खून पीती है, आज तो मैंने अपनी इन आँखो से देखा है। बस, अब मुझे राजकुमार से कुछ भी नहीं पूछना है। अतः उसने तुरन्त उसे मारने के लिए चंडालों को सौंप दिया और कहा कि इस पाप के भार से पृथ्वी को हल्का बना दो। वे उसे श्मसान में ले गये। वहाँ उन्होंने निराधार ऋषिदत्ता को बहुत धमकाया । अबला के आँखो में से बैर बैर जितने आँसू टपकने लगे। महासती पर चंडालों को दया आई... सती के सद्भाग्य से एक चंडाल ने कहा कि ऐसी निर्दोष और दयालु सती ऐसा कार्य कर ही नहीं सकती, परन्तु अब क्या करें? चंडालों को भी रहम आ गई और उन्होंने कहा कि तुम दूर देश में चली जाओ। जिससे राजा हमें दोषी न ठहरा सके कि तुम्हारे साथ हमारी मिलीभगत थी, इसलिये हमने तुम्हें जीवित छोड़ दिया । कर्म के फल का विचार करती हुई वह अपने पिता के आश्रम की ओर चल पड़ी। चंडालों ने किसी अन्य का मस्तक काटकर राजा को बता ★ दिया। अन्य ग्रन्थों में यह उल्लेख मिलता है कि चंडालों ने उसे इतना मारा कि वह बेहोश हो गई। अतः चंडाल उसे मृतवत् मान कर चले गये। जब उसे चेतना आई, तब वह कर्म का विचार करती हुई अपने पिता के आश्रम की ओर चल पड़ी। जब वहाँ पहुँची, तो पिता की मृत्यु हो चुकी थी। उसके पास चमत्कारी जड़ीबूट्टी थी । अतः शील की सुरक्षा के लिए जटिका (जड़ीबूट्टी) के प्रभाव से उसने पुरुष वेष धारण कर लिया और तापस कुमार बनकर रहने लगी। कनकरथ की रूक्मिणी के साथ शादी... दूसरी ओर कनकरथ राजकुमार ऋषिदत्ता के वियोग से जल बिन मीन की तरह तड़पने लगा । उसके वियोग से वह संतप्त रहने लगा। इसी समय में काबेरी से सुन्दरपाणी राजा का दूत रूक्मिणी के साथ शादी करने हेतु निमन्त्रण लेकर आया। हेमरथ राजा ने अपने पुत्र कनकरथ को समझाया कि ऋषिदत्ता तो यम शरण हो गई है। अतः निमंत्रण स्वीकार करना उचित है। पिता के अनुरोध से कनकरथ ने स्वीकृति प्रदान कर दी और उसने काबेरी की ओर प्रयाण किया। रास्ते में वही आश्रम आया, जहाँ ऋषिदत्ता तापस के रूप में रहती थी। वहाँ राजकुमार का दाहिना नेत्र स्फुरायन
SR No.004221
Book TitlePaschattap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C020
File Size18 MB
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