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________________ कहीं मुनसान जाए...60 आपको विश्वास नहीं होता हो, तो इसमें मैं किसी को दोष नहीं देती। मेरे ही कर्मों का दोष है।" यह कहते कहते उसकी आँखों में से गंगा-जमुना बहने लगी। सुलसा ने अपना प्रयत्न चालू रखा दूसरे दिन मांस का टुकड़ा उसने बिछाने में रख दिया। तीसरे दिन खून से रंगी हुई छूरी भी बिस्तर में रख दी। विद्या के प्रभाव से सुलसा का गमनागमन कुमार को मालूम नहीं हुआ। आ तो कुमार की श्रद्धा डगमगाने लगी। इसलिये उसने ऋषिदत्ता से पुनः पूछा कि यदि तुझे मानव को मांसभक्षण की च्छा हो, तो मैं तुझे गुप्त रीति से खिला दूंगा। तू असलियत बता दे। खुद के कर्मों का ही दोष जानकर ऋषिदत्ता रो पडी, स्वामिनाथ ! जन्म से अहिंसा को ही मैंने प्राण माना है। स्वप्न में भी मैं यह इच्छा नहीं कर सकती। पुनः ऋषिदत्ता ने विनय पूर्वक प्रत्युत्तर दिया, कि "क्या आज दिन तक मैंने कोई बात आपसे छिपाई है ? फिर भी कनकरथ किंकर्तव्यविमूढ हो गया।.. न कहा जाये, न सहा जाये। उसकी ऐसी करुणदशा हो गयी कि ऐसे कातिल दृश्य देखने की उसमें हिम्मत नहीं थी और सुशील पत्नी के वियोग को भी सहन करने में वह असमर्थ था। अतः किसी के द्वारा पूछने पर वह टालमटोल करता हुआ कहता कि मैं तो इस विषय में कुछ भी नहीं जानता। हेमरथ राजा का कोप और फैसला... एक दिन हेमरथ राजा ने आक्रोश में आकर मन्त्रियों से कहा कि इस प्रकार रोजाना मानवहत्या हो रही है और आप लोग कुछ भी नहीं कर रहे हो। क्या आप लोगों की बुद्धि का दिवाला निकल चुका है ? राजा का प्रजा के प्रति प्रेम होने से, अहिंसा के अविहड राग से और रोष से भरे हुए वचन सुनकर मंत्री थर-थर कांपते हुए उपाय सोचने लगे। मंत्रियों ने काफी मेहनत की, लेकिन सब जगह निष्फलता मिली। अन्त में थक कर वे सुलसा तापसी के पास गये और उससे मानव-हत्या का कारण पूछा। कपट विद्या में पारंगत उसने बहाना बनाते हए जवाब दिया कि प्रश्न जटिल है। रात्रि में देवता को पूछकर मैं जवाब दूंगी। इस प्रकार बहाना बनाने का यह प्रयोजन था कि देवता के नाम से लोगों को पूर्णतया विश्वास हो जाएगा। Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004221
Book TitlePaschattap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C020
File Size18 MB
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