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________________ 57... कहीं मुनसा न जाए शादी के लिये कनकरथ का प्रयाण... एक बार रथमर्दन नगर के राजा हेमरथ के रूप, लावण्य, कला और गुणसंपन्न पुत्र कनकरथ को काबेरीपुरी के राजा सुंदरपाणी ने अपनी पुत्री रूक्मिणी के साथ शादी करने के लिए निमंत्रण दिया । निमंत्रण का स्वीकार कर हेमरथ राजा ने अपने पुत्र कनकरथ को सैन्य सहित काबेरीपुरी की ओर प्रयाण करवाया । प्रयाण करके राजकुमार उसी जंगल में पहुँचा, जहाँ ऋषिदत्ता रहती थी। उसको बहुत प्यास लगी। पानी की खोज करने के लिए सिपाही इधर-उधर घूमने लगे। बहुत देर के बाद पानी लेकर सिपाही आए। तब राजकुमार ने अपनी प्यास बुझाई और उनसे पूछा, कि "इतनी देर क्यों हुई?' हाथ जोड़कर सिपाहियों ने जबाब दिया कि हे स्वामिन् ! आपको आश्चर्य होगा, परंतु यह बात सच है कि पानी की शोध में हम जंगल में भटक रहे थे। तब यहाँ से ४ कोश (१३ किलोमीटर) जाने पर हमने एक सरोवर देखा। उसके किनारे एक देवमंदिर था। जिसके पास वट का पेड़ था। वहाँ पर एक तापस दिखाई दिया। जिसके पास कभी-कभी रूप-यौवन से सुशोभित लड़की दिखाई देती व पुनः क्षणभर में वह अदृश्य हो जाती । अरे ! वह लड़की बारबार दृश्य-अदृश्य हो रही थी। यह हमारी आँखो का भ्रम तो नहीं? मृगजल के समान हमारी कल्पना तो नहीं? इस आश्चर्य को देखने के लिए हम वहां खड़े रहे । अतः वापस आने में विलम्ब हुआ है। ऋषिदत्ता की शादी... दूसरे दिन कुमार को उत्कंठा हुई कि किसी भी तरह मुझे इसका रहस्य प्राप्त करना है। 'इसलिये कुमार ने उस क्षेत्र की ओर प्रयाण किया । वहाँ पर राजकुमार ने भी देखा, कि क्षणभर में एक लड़की दिखाई देती और पुनः अदृश्य हो जाती। राजकुमार देवमंदिर में गया। वहाँ पर उसने एक वृद्ध तापस को देखा। राजकुमार ने उसका अभिवादन किया। तापस ने राजकुमार से उसका परिचय पूछा। तापस को अपना परिचय देकर उसने वहाँ रहने की अनुमति मांगी। तापस ने सहर्ष अनुमति प्रदान की। फ्र
SR No.004221
Book TitlePaschattap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C020
File Size18 MB
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