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41...कहीं मुना न जाए
की पुत्री के रूप में उत्पन्न हआ। इलाचीकुमार 8 पूर्वमत में इलाचीकुमारने
को पूर्वभव में पत्नी साध्वी के ऊपर स्नेह था। आलोचना न ली...
व उसकी आलोचना नहीं ली थी। अतः
इलाचीपुत्र उत्तमकुल में उत्पन्न होने पर भी वसंतपुर नगर में अग्निशर्मा नामक
लोक लज्जा छोड़कर नटनी के नाच को ब्राह्मण युवक रहता था। उसने अपनी पत्नी
देखकर उसके साथ गया। के साथ चारित्र लिया। परन्तु परस्पर मोह
इलाचीकुमार ने एक दिन नटराज को नहीं टूटा।
कहा कि, "अब मैं नट १) अग्निशर्मा मुनि आलोचना लिए विना मरकर देवलोक में गए। उसकी भूतपूर्व २) साध्वीजी ब्राहमणकुल के अभिमान व पांच आदि धोने की आलोचना लिए विना मरकर देवलोक में गए । हो गया है, तो मेरे साथ पत्नी साध्वी ने एकबार
नटनी का विवाह कर ब्राह्मणकुल का अभिमान किया। उसकी
दीजिये।" नटराज ने कहा कि, "तुम राजा आलोचना लिए बिना ही वह मर कर देवलोक
के पास से इनाम प्राप्त करो, तो तुम्हारे साथ गई। मुनिश्री भी काल करके देव-लोक गये।
उसका विवाह करूंगा।" उसके बाद एक दिन वहां से मृत्यु पाकर अग्निशर्मा का जीव
बेनातट के बंदरगाह पर कला देखने के लिये इलावर्धन नगर में धन्यदत्त सेठ के पुत्र
राजा को आमंत्रण दिया गया। नटनी ढोल इलाचीकुमार के रूप में उत्पन्न हुआ। पूर्व भव
बजाने लगी। इलाचीपुत्र ने रस्सी पर नाचना की उसकी पत्नी का जीव कुलमद की
शुरु किया। लोगों ने नट की करामात देखकर
इलाचीपुत्र नटनी को रस्सी पर नाचते हुए देखकर आलोचना न लेने के कारण नीच कुल में नट
तालियाँ बजाई। हर्ष से किलकारियाँ कारने उस पर मोहित हो गया।