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कहीं सुना न जाए...40
एक बार दोनों मुनि हस्तिनापुर आये। वहाँ मासक्षमण के पारणे में दोनों मुनि गोचरी गये थे। तब पूर्वअवस्था के वैर का स्मरण होने से चक्रवर्ती सनतकुमार के मंत्री नमुचि ने खुद के गौरव की रक्षा के लिये सिपाहियों के द्वारा दोनों मुनियों को गाँव के बाहर निकलवा दिये। संभूति मुनि क्रोध में आकर उसके ऊपर तेजोलेश्या छोडने को तैयार हुए। मुख में से धुआँ निकलने लगा। लोग घबरा गये। सनतकुमार चक्रवर्ती ने मुनि के पास आकर माफी मांगी और मंत्री के पास भी माफी मंगवायी। चित्रक मुनि के बहुत समझाने पर संभूति मुनि ने सब को क्षमा तो किया, लेकिन दोनों मुनि ने विचार किया कि इस देह के कारण कषायादि करने पड़ते हैं, इसलिये हम दोनों अनशन कर लें। दोनों मुनि जंगल में अनशन करने लगे। अब लोग दोनों मुनि की खूब प्रशंसा करने लगे। यह सुनकर सनत्कुमार की पत्नी स्त्रीरत्न सुनंदा १ लाख ९२ हजार परिवार के साथ दोनों मुनि को वंदन करने आयी। वंदन करते-करते सुनंदा के केश संभूति मुनि के पाँव को छू गये। उस केश के स्पर्श से संभूति मुनि को अत्यंत राग उत्पन्न हुआ और नियाणा किया कि संयम का फल स्त्रीरत्न, परभव में मुझे मिले। चित्रक मुनिने उनको बहुत समझाया। लेकिन उन्होंने आलोचना न ली, बल्कि कहा कि, मैंने दृढ़ मन से नियाणा किया है, वह फिरने वाला नहीं । इसलिये आप अब मुझे कुछ मत कहना। यह सुनकर चित्रक मुनि शांत रहे। फिर दोनों मुनि काल करके देवलोक में गये। उसके बाद चित्रक का जीव पुरिमताल नगर में श्रेष्ठिपुत्र बना और संभूति मुनि का जीव कांपिल्यपुर में ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती बना और मरकर सातवीं नरक में गया।
यदि उसने आलोचना ले ली होती, तो सातवीं नरक के योग्य कर्म बंध न होता। अतः हमें अवश्य आलोचना लेनी चाहिये।
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