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________________ कहीं मुनसान जाए....42 लगे परतु राजा की दृष्टि नटनी -पर पड़ी और वह नटनी पर मोहिल हो गया। जिससे राजा ने उसे इनाम न दिया। फिर से दूसकी बार, तीसरी बार खेल बताने के लिये कहा। चौथी बार रस्सी पर चढ़ा, परंतु राजा नमी पर मोहित हो जाने से इलाचीकुमार की मौत चाहता था। इस कारण इनाम न दिया। रस्सी पर चढ़े हुए उसने एक महल में देखा, तो एक पधिनी स्त्री मुनि को मिठाई वहीरने के लिये बिनति कर रही थी और जितेन्द्रिय मुनि आँख की पलक भी ऊंची किये बिना ना-ना कह रहे थे। यह देखकर इलाचीकुमार को wain Extiscattern International अपनी कामवासना के ऊपर फटकार और मुनि के ऊपर अहोभाव जगा। अहोभाव बढ़ते-बढ़ते शुक्लध्यान पर चढ़े हुए इलाचीकुमार ने रस्सी पर ही केवलज्ञान प्राप्त किया। देवों ने साधुवेष अर्पण कर वंदन किया। इलाचीपुत्र केवली ने देशना दी। उसमें उन्होंने कहा कि खुद मैंने पूर्व के तीसरे भव में आलोचना न ली और नटनी के जीव ने भी आलोचना न ली, जिससे यह सारी विडंबनाए हुई। यह सुनकर नटनी को भी जातिस्मरण ज्ञान हुआ, साथ ही तीव्र पश्चाताप हआ और उसने भी केवलज्ञान प्राप्त किया। रस्सी पर नाचते हुए इलाचीकुमारने महल में मुनि को देखा और अहोभाव बढ़ने से इलाचीकुमार को केवलज्ञान हो गया। Fiwww.jamelibrary.org
SR No.004221
Book TitlePaschattap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C020
File Size18 MB
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