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फलदाता ईश्वर गण्ये, भोक्तापणु सधाय, अम को ईश्वरतणु, ईश्वरपणु ज जाय - ८० ईश्वर सिद्ध थया विना, जगत नियम नहि होय, पछी शुभाशुभ कर्मनां, भोग्यस्थान नहि कोय. ८१
समाधान - सद्गुरू उवाच भाव कर्म निज कल्पना, माटे चेतन रूप, जीव वीर्यनी स्फुरणा, ग्रहण करे जड धूप, झेर सुधा समजे नहीं, जीव खाय फल थाय, अम शुभाशुभ कर्मर्नु भोक्तापणु जणाय. एक रांक ने एक नप, ए. आदि जे भेद, कारण विना न कार्य ते, अज शुभाशुभ वेद्य. फलदाता ईश्वर तणी एमां नथी जरूर कर्म स्वभावे परिणमे थाय भोगथी दूर. ते ते भोग्यविशेषनां स्थानक द्रव्य स्वभाव । गहन वात छे शिष्य आ कही संक्षेपे साव.
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__ शंका - शिष्य उवाच कर्ता भोक्ता जीव हो पण तेनो नहि मोक्ष ; वीत्यो काल अनंत पण वर्तमान छे दोष.
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