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आत्मा सदा असंग ने, करे प्रकृति बंध; अथवा ईश्वर प्रेरणा, तेथी जीव अबंध. माटे मोक्ष उपायनो, कोई न हेतु जणाय; . कर्मतणु कापणु, कां नहि कां नहि जाय.
समाधान - सद्गुरू उवाच होय न चेतन प्रेरणा. कोण ग्रहे तो कर्म ; जड-स्वभाव नहि प्रेरणा, जुओ विचारी धर्म. ७४ जो चेतन करतु नथी, थतां नथी तो कर्म तेथी सहज स्वभाव नहि, तेम ज नहीं जीव धर्म. ७५ केवल होत असंग जो, भासत तने न केम ? असंग छे परमार्थथी, पण निजभाने तेम. कर्ता ईश्वर कोई नहि, ईश्वर शुद्ध स्वभाव ; अथवा प्रेरक ते गण्ये, ईश्वर दोषप्रभाव. चेतन जो निज भानमां, कर्ता आप स्वभाव ; बर्ते नहि निजभानमां, कर्ता कर्म प्रभाव.
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शंका-शिष्य उवाच जीव कर्म कर्ता कहो, पण भोक्ता नहि सोय, शुं समजे जड कर्म के, फल परिणामी होय;
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