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शुभ करे फल भोगवे देवादि गतिमांय; अशुभ करे नर्कादि फल कर्म रहित न क्यांय.
समाधान - सद्गुरू उवाच
जेम शुभाशुभ कर्मपद जाण्यां सफल प्रमाण; तेम निवृत्ति सफलता, माटे मोक्ष सुजाण. वीत्यो काल अनन्त ते, कर्म शुभाशुभ भाव; तेह शुभाशुभ छेदतां उपजे मोक्ष स्वभाव. देहादिक संयोगनो, आत्यंतिक वियोग ; सिद्ध मोक्ष शाश्वत पदे, निज अनंत सुख भोग.
शंका - शिष्य उवाच
होय कदापि मोक्ष पद नहि अविरोध उपाय, कर्मों काल अनंतनां शाथी छेद्यां जाय ? अथवा मत दर्शन धणां, कहे उपाय अनेक ; मां मत साचो को बने न अह विवेक. कई जातिमां मोक्ष छे, कया वेषमां मोक्ष ; नो निश्चय ना बने, घणा भेद से दोष.
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