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________________ होय मुमुक्ष, जीव ते, समजे एह विचार; होय मतार्थी जीव ते, अवळो ले निर्धार. होय मतार्थी तेहने, थाय न आत्म लक्ष ; तेह मतार्थी लक्षणो, अहीं कह्यां निर्पक्ष. मतार्थी लक्षण बाह्य त्याग पण ज्ञान नहीं, ते माने गुरू सत्य ; अथवा निज कुलधर्मना, ते गुरूमां ज ममत्व. जे जिन देहप्रमाण ने, समवसरणादि सिद्धि; वर्णन समजे जिननु, रोकी रहे निज बुद्धि.. प्रत्यक्ष सद्गुरूयोगमां, वर्ते दृष्टि विमुख ; असद्गुरूने दृढ करे, निजमानार्थे मुख्य. देवादि गति भंगमां, जे समजे श्रुतज्ञान; माने निजमतवेषनो, आग्रह मुक्तिनिदान. लघु स्वरूप न वृत्तिनु, ग्रह्यु ं व्रत- अभिमान; ग्रहे नहीं परमार्थने, लेवा लौकिक मान. अथवा निश्चय नय ग्रहे, मात्र शब्दनी मांय; लोपे सद् व्यवहारने, साधन रहित थाय. ज्ञान दशा पामे नहीं, साधन दशा न कांई ; पामे तेनो संग जे, ते बूडे भव मांही. Jain Education International 24 For Personal & Private Use Only २२. २३. २४. २५. २६. २७. २८. २९. ३०. www.jainelibrary.org
SR No.004217
Book TitleBhakti Kartavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapkumar J Toliiya
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1983
Total Pages128
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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