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________________ हमारे सफाई अभियान में पग-पग पर अवरोध पैदा होते जा रहे हैं .... तुरन्त हम उठते हैं और धम्म् कर एक-एक खिड़कियाँ बंद कर देते हैं.... यही है संयम, नया कर्म कचरा न आने देने वाला । अब ज्ञान-तप-संयम इन तीनों का सुयोग होते ही आत्मा का मोक्ष हो ही जाता है.... ऐसा जैनदर्शन में जिनेश्वर परमात्मा ने फरमाया है। बन्धन तोड़ो हाथी को बन्धन है अंकुश का..... घोड़े को बन्धन है लगाम का......सर्प को बन्धन है करंडिये का..... कुत्ते को बन्धन है गले के पट्टे का ..... पक्षी को बन्धन है पिंजरे का...... पुरुष को बन्धन है स्त्री का..... और ठीक उसी प्रकार आत्मा को बन्धन है कर्म का ! जब तक आत्मा को इस बन्धन से मुक्ति नहीं मिलती तब तक उसे चौर्यासी के चक्कर के भटकन में फँसा - धँसा रहना पड़ता है... । एक स्थान से दूसरे स्थान पर जन्म लेना.... जैसे-तैसे जीना..... सुख की इच्छा होते हुए भी दुःख की खाई में जाना..... मरने की तनिक भी इच्छा न हो तो भी जबरन मरना .... और मरने के बाद भी ऐसे-ऐसे नये शरीर-रूप-रंग धारण करने पड़ते हैं..... जिनसे हमें सख्त नफरत हो, यह सब कर्मों का ही तो फल है। कर्मबन्धन के कारण अपनी इस आत्मा ने अनगिनत शरीर ग्रहण किए हैं और छोड़े हैं....एक लेखक ने कहा भी है The Real fetter to the soul is subtle body which is called Karman body. Due to subtle body soul encased in one and casting it off wears another, hence bears the burden of different bodies. रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 7 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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