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माँ को कमरे में बिठा दी। सास को तैयार कर दी। बुढ़िया को देखकर उसने कहा- 'नांचो....नाचो ! नहीं तो जीव लेकर जाऊँगी' बुढ़िया ने सोचा- जमाई की बात तो सही है और वह नाचने लगीथैया...थैया...था..... था.....थैया !
यह सब देखकर बहू हर्ष से पागल हो गई और उससे रहा नहीं गया और वह बोल उठी
देख बुढ़िया का चाला (एक्टिंग) सिर मुंडा मुंह काला! दो बार - तीन बार वह बोल गई।
यह सुनकर मातृभक्त युवक से भी रहा न गया....उसने मूंछ पर ताव देकर तपाक से ईंट का जवाब पत्थर से दिया...
देख बंदे की फेरी माँ मेरी कि तेरी!!
यह सुनकर बहू चौंकी....बेहोश होने की एक्टिंग की और फिर सचेतन होकर बुढ़िया का चूँघट उठा कर देखा....'अरे माँ ! तू यहाँ कहाँ से ? अरे बेटा ! तेरे को ठीक है न ? बाकी सब बातें गौण है।'
बहू बेचारी बहुत ही शर्मिन्दा हुई और अपनी करनी का फल देखकर 'लेने गई पूत, खो आई खसम' जैसी उसकी दुर्दशा हो गई। उसे मन ही मन बहुत पश्चात्ताप हुआ। दोनों माताओं ने उसे समझाया और विनय-विवेक-शांतिपूर्वक जीवन व्यतीत करने की अमूल्य सीख दी। .. इस तरह कई जगह अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिये....मानसम्मान प्राप्त करने के लिये...स्वांग भी रचे जाते हैं। ऐसे दंभी लोगों
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /65
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