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से' जैसों को तैसा (Tit For Tat) मेरे जीते जी मेरी पूज्य माताजी का अपमान हो जाय, ऐसा हो ही नहीं सकता।' युवक ने मन ही मन योजना बना डाली। पास वाले गाँव में ही ससुराल था। युवक भोर से पहिले ही अपने ससुराल पहुँच गया । अपना-सा मुँह लिये गुमसुम वहाँ पर बैठ गया।
सास ने आवभगत कर पूछा 'बात क्या है जमाईराज ! बताइये तो सही ? सुख-दु:ख की बात हमें नहीं बतायेंगे तो और किसे बतायेंगे ? क्योंकि आपके पिताजी का देहांत हो गया है।
सास द्वारा बहुत पूछने पर उसने मुँह नीचे करते हुए बताया कि 'अब आपको क्या कहूँ ? बात ही कुछ ऐसी बनी है, जिसे न कहा जाय न सहा जाय। आपकी बेटी को रविवार के दिन डायन लगी है। डायन कह रही है कि मेरी मंशा पूरी करो वरना मैं जीव लेकर जाऊँगी...'
'अच्छा !' सास तो एकदम घबरा गई, उसकी वह इकलोती बेटी जो थी। बोली- 'क्या है उसकी मंशा ?'
'उसकी मंशा है कि मेरी माँ का सिर मुंडा कर, मुँह पर कालिख पोत कर....घूघट में मेरे आगे नचाओ तो ही मैं छोडूंगी, वरना जीव लेकर जाऊँगी।' युवक ने बेहद दर्दीली आवाज में बात सुनाई। तीर निशाने पर लगा। सासु ने कहा- अरे ! जमाईराज ! इतनी-सी बात में आप इतने व्यथित हो गये...? यह तो मेरी बेटी को बचाने की ही तो बात है, मेरी लाड़ली यदि बच जाती है तो मैं सब कुछ करने को तैयार हूँ...जाईये, अब आप घोड़े बेचकर सो जाइये....मैं रविवार को ठीक समय पर पहुँच जाऊँगी।'
रविवार आया और बहू ने तो अपनी एक्टिंग चालू कर दी।
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /64
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