SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( एक ठाणिया- जैसे शक्कर की चासनी बनाते हैं, तब एक तार की, दो तार की.... तीन तार की बनाई जाती है.... तरल.... मध्यम... और घट्ट.... एक ठाणिया चासनी का मतलब है एक तार की.....बिल्कुल तरल... पानी जैसी) 2. दो ठाणिया रसबँध - ईख अथवा नीम का रस उबालने के बाद गाढ़ा होकर आधा हो जाता है.... पहिले से थोड़ा घट्ट । उसी प्रकार कर्म का दो ठाणिया रसबंध होता है। पहले से इस रस में अधिक मात्रा में फल देने की शक्ति होती है । 3. तीन ठाणिया रसबंध - ईख अथवा नीम के रस को खूब उबालने पर रस का जो 1/3 भाग शेष रहता है... उसे तीन ठाणिया का रस कहते है। इसी तरह कर्म का तीन ठाणिया रसबँध होता है। इसमें दो ठाणिया से कई गुना अधिक फल देने की शक्ति होती है। 4. चार ठाणिया रसबंध - ईख अथवा नीम के रस को कढ़ाई में अत्यन्त ताप देकर उबालने पर जो 1/4 अत्यन्त गाढा-घट्ट रस बचता है, उसे चार ठाणिया रस कहते हैं । कर्म का भी रसबंध ऐसा घट्ट और गाढ़ा जब होता है, तब उसे चार ठाणिया रसबंध कहते हैं। इसमें सब से ज्यादा फल देने की ताकत है। उदाहरण- आम बात है.... आपने कई बार महसूस किया होगा..... सिरदर्द - हल्का-सा सिरदर्द! किसी ने पूछ लियाभैया ! कैसे हो ? तो आप तपाक से बोल उठेंगे, 'अजी.....आनंद ही आनंद है..... हल्का-सा सिरदर्द है' और आप अपने कार्य-कलाप में मस्त हो जायेंगे। अशातावेदनीयकर्म के उदय से सिरदर्द हुआ, मगर रस की तीव्रता नहीं थी.... अतः आपको कोई खास दिक्कत नहीं आई। Jain Education International रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 48 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy