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'रिझ्यो साहेब ! संग न परिहरे भांगे सादि अनंत।'
हे प्रभो ! यदि आप हमारे पर खुश हो जाओ तो हमें आपका सादि अनंत स्थिति का संयोग मिल जाय... | ऐसा संयोग जो कभी टूटे ही नहीं....। ___अंतिम भव के शरीर की ऊँचाई, चौड़ाई और मोटाई जितनी होती है.....उसमें रहे हुए आत्मप्रदेशों का संकोच मोक्ष में जाने के बाद इस कद्र हो जाता है कि सिर्फ 2/3 भाग ही वहाँ शेष रहता है।
दृष्टांत के तौर पर...जीव के शरीर की 5... फुट की ऊँचाई हो......फुट की चौड़ाई हो..और 712 ईंच की मोटाई हो तो मोक्ष में जाने पर आत्मप्रदेशों का संकोच इस तरह होगा 3,, फुट की ऊँचाई, एक फुट चौड़ाई और पाँच ईंच की मोटाई, चूँकि आत्मप्रदशों के समूह में आत्मा में (आत्मा में) संकोच एवं विकास का स्वभाव माना गया है। अत: शरीर में जो खाली भाग है (नाक आदि में) उनमें 1/3 भाग के प्रदेश अपने आप सेट हो जाते हैं। - जैसे कि संसारी अवस्था में भी आत्मा के साथ यही घटित होता है.....चींटी मरकर आदमी बनी....तो चींटी के आत्मप्रदेश मनुष्य के शरीर के अनुसार अपने आपको फैला देते हैं....मनुष्य मर कर चींटी का भव धारण करता है, तब उन्हीं अपने आत्मप्रदेशों को चींटी की देह के प्रमाण में संकोचित कर देता है। - प्रकाश को यदि होल में लेकर जायेंगे तो वह होल में फैल जायेगा....वो ही दीया....वो ही बाती और उसका वो ही प्रकाश....यदि एक छोटी-सी कोठरी में ले जाया जाय तो वह उसमें अपना संकोच कर समाविष्ट हो जायेगा...और यदि एक छोटे-से-छोटे मटके में . उस प्रकाश को रख देंगे तो उसमें भी उसका समावेश हो जायेगा...।
रेकर्म तेरी गति न्यारी...!!/43
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