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________________ प्रवचन - 3 कर्मबंध के चार प्रकार आठ वर्गणाओं का विचार हम कर चुके हैं। इसलिये हमें यह ख्याल में आ रहा है कि कार्मणवर्गणा विश्व के कोने-कोने में पड़ी हुई है । उसमें सुख-दुःख देने की.... ज्ञान आदि गुण रोकने की शक्ति उत्पन्न होती है । कर्मबंध कार्मणवर्गणा को जब अपनी आत्मा मिथ्यात्व आदि कारणों से ग्रहण कर अपने साथ एकमेक बनाती है..... अर्थात् कार्मणवर्गणा और आत्मा के बीच क्षीर-नीर (दूध-पानी) या लोहा और आग की तरह एकमेकता खड़ी होती है, उसे कर्मबंध कहते हैं । कर्मबंध के चार विभाग हैं - (1) प्रकृतिबंध ( 2 ) स्थितिबंध (3) रसबंध और (4) प्रदेशबंध | 1. प्रकृतिबंध जब आत्मा के साथ कार्मणवर्गणा मिथ्यात्व आदि कारणों से जुड़ती है तब उस कार्मणवर्गणा में आठ अथवा सात भिन्न-भिन्न स्वभाव उत्पन्न होते हैं। जब आयुष्य का बंध होता हो तब आठ स्वभाव उत्पन्न होते हैं और जब आयुष्य का बंध न पड़ता हो तब सात स्वभाव उत्पन्न होते हैं । आशय यह है कि कार्मणवर्गणा के कितने ही स्कंधों में ज्ञान रोकने का स्वभाव, कितने ही में दर्शन रोकने का स्वभाव, कुछेक में सुख-दुःख देने का स्वभाव, तो कुछेक में क्रोधादि करवाकर वीतराग रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 40 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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