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फाँसने और बदनाम करने वाली युवती पर उसे भयंकर घृणा हुई और उसने हुक्म दिया 'जाओ ! इस नीच महिला को सजा के रूप में देशनिकाल दे दो... । '
लोग तो ढोलक की तरह होते हैं । ढोलक दोनों ओर से बजती हैं। अब सभी लोग मुनि की प्रशंसा करने लगे। मगर, नाम तो बदल ही गया.....मुनि मदनब्रह्म से झांझरिया ऋषि बन गये। मुनि के संयम की पवित्रता जगजाहिर हो गई ..... । काजल की कोटड़ी में फँसे मगर एक छोटा-सा भी काला दाग लगने नहीं दिया...... कमाल है !
इस घटना को बीते कुछ समय हुआ था कि....
एक बार कांचनपुर गाँव जहाँ मुनि की बहन ब्याही हुई थी..... वहाँ मुनि गोचरी के लिये गये और उधर राजमहल के हवादार झरोखे में बैठे राजा-रानी नगर की चर्या देख रहे थे। रानी की नजर मुनि पर टिकी और उसने अपने सगे भाई को पहचान लिया। भाई पर उसका अपार प्रेम उमड़ पड़ा। जिससे उसकी आँखें अश्रु से लबालब हो उठी और अश्रुधारा अविरल बहने लगी। राजा ने जब यह दृश्य देखा तो उसने उसका दूसरा अर्थ निकाला कि 'रानी, एक संन्यासी को देखकर आँसू बहा रही है, इसका मतलब निश्चित ही यह संन्यासी इसका पूर्व का यार होगा। अब यह देख-सोच कर आँसू बहा रही है कि यह तो संन्यासी बन गया.... अब मुझे इससे दैहिक सुख कैसे मिलेगा ?'
राजा ने रानी से इस बारे में कुछ भी पूछा नहीं.... सीधे ही राजदरबार में जाकर चंडालों को बुलाकर उन्हें मुनि को मारने का हुक्म दे दिया । 'बिना विचारे जो करे सो तो फिर पछताय ।'
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 36
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