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एक युवा नारी, जिसका पति परदेश गया हुआ था, वह अपने महल के झरोखे में बैठी कामवासना से ओतप्रोत आँखों से इधर-उधर निहार रही थी। उसकी दृष्टि राह में आ रहे मुनि पर पड़ी। अद्भुत रूप और लावण्य को देख उसका विकार भड़क उठा....! उसने अपनी दासी को भेजकर मुनि को गोचरी के बहाने अपने महल में बुलवाया। मुनि सरल भाव से पधारे....वे अनभिज्ञ थे कि इसका मन मैला है और तन उजला है। युवा नारी ने वासना
और विकार से भरे शब्दों से दैहिक सुख की याचना की। इस पर मुनि ने युवती को सावधान करते हुए दृढ़ता पूर्वक उसके प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
'खा न सकूँ तो क्या हुआ ! ढोल तो सकूँ' इस दुर्बुद्धि से ग्रसित वह युवती मुनि को कलंक लगाने के उद्देश्य से उनके पाँवों में बेल की भाँति लिपट गई।
अपने संयम और ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए मुनि वहाँ से भागने लगे तो युवती ने उनके पाँव में अपनी झांझर डाल दी और जोर-जोर से चिल्लाने लगी 'बचाओ...बचाओ ! पकड़ो... पकड़ो !! इस पापी दुराचारी को....इसने मुझ अबला पर बलात्कार करने की कोशिश की!' - मुनि ने अपने संयम की रक्षा को महत्व देते हुए उस झांझर को निकालने में अपना समय खराब नहीं किया....लोग अंटशंट .बोलने लगे....भयंकर निन्दा करने लगे....देखो-देखो....वेश तो साधु का....और काम कैसा ? मुनि पर थूकने लगे....मगर मुनि समभाव से सब कुछ सहते रहे....
इधर, राजमहल के झरोखे बैठा राजा सब कुछ देख रहा था। .. 'मुनि निर्दोष है' उसको पता था। मगर छलकपट कर शुद्ध मुनि को
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /35
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