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________________ प्रवचन-2 कार्मणबर्गणा और कर्म कार्मणवर्गणा घर में भी पड़ी हुई है....बाग-बगीचे में भी है....फिल्म थियेटरों में भी है.....ओलम्पिक ग्राउण्डों में भी अर्थात् विश्व की ऐसी कोई जगह नहीं बची जहाँ इसका अस्तित्व न हो....सर्वत्र व्याप्त है......और इस कार्मणवर्गणा को आत्मा मिथ्यात्व आदि कर्मबन्धन के कारणों से ग्रहण कर कर्मरूप बना लेती है। यह हकीकत हम पिछले प्रकरण में रेडियो यंत्र के उदाहरण से अच्छी तरह समझ चुके हैं। यहाँ एक प्रश्न सभी के मन में सहज ही उठा होगा यह कार्मणवर्गणा किस चिड़िया का नाम है ? इसका स्वरूप क्या है ? पुदगलकीवर्गणा ___ हम अपनी इन दो आँखों के द्वारा जो कुछ देखते हैं.....कानों के द्वारा जो भी सुनते हैं......नाक द्वारा सूंघते हैं......जीभ के द्वारा रसास्वादन करते हैं....हाथ-पाँव आदि से छूते हैं.....वह सब कुछ पुद्गलास्तिकाय है। पेन-टेबल, अच्छे-बुरे शब्द-गीत, अत्तर-सेंट, रोटी-हलुवा-रसगुल्ला-समोसा, डनलप गादी आदि सभी के सभी पुद्गलास्तिकाय है। ___ अरे, आपका यह शरीर भी पुद्गलास्तिकाय है। हड्डी, पसली, खून, टट्टी-पैशाब सब कुछ पुद्गलास्तिकाय है। इसके सिवाय Bomb, H-Bomb, स्कडास्त्र, पेट्रीयेट, Mig Fighter टेंकर भी पुद्गलास्तिकाय है। जम्बो जेट, प्लेन, ट्रेन,मारूति, हीरो होंडा, हुंडाई, इंडिका आदि भी पुद्गलास्तिकाय है....या संक्षेप में कहे तो रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /21 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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