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________________ इसमें कारण ? इसलिये हमें मानना पड़ता है कि कर्म जैसी कोई अदृश्य शक्ति है, जिसके कारण ही ये सभी घटनाएँ और दुर्घटनाएँ घटती जा रही हैं.... सावधानी हटी, दुर्घटनाएँ घटी' यह सूत्र तो बाहरी कारणों को लेकर ही है। ___ ऐसे ही दिल दहलाने वाली हम तीसरी दुर्घटना देखते हैं.... पश्चिम पाकिस्तान बांग्लादेश में 1974 के जून महीने में ब्रह्मपुत्रा नदी बाढ़ से पागल हो गई....उसकी चपेट में करीब अस्सी हजार घर आ गए.... भयंकर प्रलयकारी विनाश हुआ....चारों ओर हाहाकार मच गई। सुनामी का आतंक सन् 2000, 26 जनवरी में कच्छ का भयानक भूकंप-गतवर्ष सूरत में जल-प्रलय सा माहौल....इस वर्ष सन् 2008 में म्यांमर में नरगीस से लाखों की जानमाल हानि.....ऐसे तो अनगिनत प्रसंग गिनाये जा सकते हैं। इन सभी घटनाओं में 'रे कर्म ! तेरी गति न्यारी' ही मानना पड़ेगा। चक्रवर्ती सनत और कर्मरोग सौधर्म देवलोक में इन्द्र महाराजा सिंहासनारूढ़ थे। वे अपने अवधिज्ञान से भूमितल को देख रहे थे कि यकायक उनका ध्यान सनतकुमार चक्रवर्ती के रूप-लावण्य पर केन्द्रित हो गया.... 'अहो! एक मानव होते हुए भी चक्रवर्ती सनत का कितना अद्भुत देह का सौंदर्य और रूप लावण्य है.....! ___दो ईर्ष्यालु देवों से यह प्रशंसा सही नहीं गई और वे तुरन्त मानवलोक में आये। ब्राह्मण का रूप धारण किया और जहाँ सनतकुमार था वहाँ पहुँच गये। योगानुयोग उस वक्त स्नान से पूर्व पीठी का कार्यक्रम चल रहा था। देह पर जगह-जगह कस्तूरी आदि के धब्बे लगे हुए थे.....ब्राह्मण रूपधारी दोनों देव चकित रह गये....ओह ! इतना अद्भुत रूप...एक मल-मूत्र-श्लेष्म-विष्ठा से रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /10 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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