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षष्ठी विभक्तिः सम्बन्ध कारक
अभ्यास 5
रहुणन्दण/रहुणन्दणा/रहुणन्दणु / रहुणन्दणो ( 1 / 1 ) अज्झयण / अज्झयणा / अज्झयणसु / अज्झयणासु / अज्झयणहो / अज्झयणाहो / अज्झयणस्सु (6/1) हेउ / हेऊ (6 / 1 ) गंथ / गंथा / गंथु ( 2 / 1) पढइ / पढेइ/पढए।
नियम 1- हेउ (प्रयोजन या कारण अर्थ में) शब्द के साथ षष्ठी विभक्ति होती है। हेउ शब्द तथा कारण या प्रयोजनवाची शब्द दोनों को ही षष्ठी विभक्ति में रखा जाता है।
सो (1/1) केण / केणं/कें (3/1) अथवा कहां/काहां (5/1) अथवा क/का/कसु/कासु/कहो / काहो / कस्सु (6/1 ) हेउ / हेऊ (6/1) आगच्छिअ / आगच्छिआ/आगच्छिउ / आगच्छिओ।
नियम 2- यदि हे शब्द के साथ सर्वनाम का प्रयोग किया गया है तो हे शब्द और सर्वनाम दोनों में विकल्प से तृतीया, पंचमी या षष्ठी विभक्ति होती है।
गिरिहिं / गिरीहिं / गिरिहं / गिरीहं ( 7 / 2 ) वा गिरि/गिरी / गिरिहं/ गिरीहूं / गिरिहं / गिरीहं (6 / 2) मेरु/मेरू (1/1 ) अईव उण्णमइ / उण्णमेइ /
उण्णमए ।
नियम 3 - एक समुदाय में से जब एक वस्तु विशिष्टता के आधार से छाँटी जाती है, तब जिसमें से छाँटी जाती है उसमें षष्ठी या सप्तमी विभक्ति होती है।
पुत्ती / पुत्ति / पुत्ती / पुत्ति (4 / 1 अथवा 6 / 1 ) कुसल / कुसला (1/1)1
नियम 4 - आशीर्वाद देने की इच्छा होने पर कुसल शब्द के साथ चतुर्थी या षष्ठी विभक्ति होती है।
ह ं (1/1) महावीर / महावीरा / महावीरसु/महावीरासु / महावीरहो / महावीराहो /महावीरस्सु (2/16/1 ) वन्दउं / वन्दमि / वन्दामि / वन्देमि । नियम 5द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति होती है।
अपभ्रंश- व्याकरण एवं छंद - अलंकार अभ्यास उत्तर पुस्तक
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