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सो (1 / 1) धण / धणा / धणसु/धणासु/ धणहो/धणाहो / धणस्सु (3/16/1) धणवन्त / धणवन्ता / धणवन्तु / धणवन्तो ( 1 / 1 ) हविअ / हविआ/ हविउ / हविओ।
नियम 5 - तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति होती है। सो (1 / 1 ) सीह / सीहा / सीहसु/सीहासु/सीहहो / सीहाहो /सीहस्सु (5/16/1) डरइ / डरेइ / डरए ।
नियम 5- पंचमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति होती है। त/ता/ तसु/तासु/तहो/ ताहो / तस्सु (6/1) घर/घरा / घरसु / घरासु /... घरहो /घराहो / घरस्सु (7/1 - 6 / 1 ) पहाण / पहाणा (1/2) अत्थि । नियम 5- सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति होती है।
सप्तमी विभक्तिः अधिकरण कारक
अभ्यास 6
नरिंद/नरिंदा/नरिंदु/नरिंदो (1/1) आसनि/ आसने ( 7 / 1) चिट्ठिअ / चिट्ठिआ/चिट्ठिउ/चिट्ठिओ ।
नियम 1 - कर्त्ता की क्रिया का आधार या कर्म का आधार अधिकरण कारक होता है। वह सप्तमी विभक्ति में रखा जाता है।
सो (1/1) घरि / घरे (7/1 ) वसई / वसेइ / वसए।
नियम 1 - कर्त्ता की क्रिया का आधार या कर्म का आधार अधिकरण कारक होता है। वह सप्तमी विभक्ति में रखा जाता है ।
कोहि/कोहे (7/1) उवसमि/उवसमिर (7/1 ) करुणा / करुण ( 1/1) होइ ।
नियम 2 - जब एक कार्य के हो जाने पर दूसरा कार्य होता है तो हो चुके कार्य में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है ।
दुस्सीलि / दुस्सीले (7/1) णस्सि / णस्सिए (7 / 1) सील / सीला/सीलु (1/1) फुरइ / फुरेइ / फुरए ।
नियम 2- जब एक कार्य के हो जाने पर दूसरा कार्य होता है तो हो चुके कार्य में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है।
अपभ्रंश-व्याकरण एवं छंद - अलंकार अभ्यास उत्तर पुस्तक
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