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________________ मगण गुरु मान लिया जाता है और यदि गुरु मानने की आवश्यकता न हो तो वह ह्रस्व या दीर्घ जैसा भी हो बना रहेगा। (v) चन्द्रबिन्दुका मात्रा की गिनती पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। जैसे देवहुँ। ‘हुँ' पर चन्द्रबिन्दु का कोई प्रभाव नहीं है। (हुँ ह्रस्व है तो मात्रा ह्रस्व रहेगी और हूँ दीर्घ होगा तो मात्रा दीर्घ होगी।) 2. वर्णिक छन्द - जिस प्रकार मात्रिक छन्दों में मात्राओं की गिनती होती है उसी प्रकार वर्णिक छन्दों में वर्णों की गणना की जाती है। वर्णों की गणना के लिए गणों का विधान महत्त्वपूर्ण है। प्रत्येक गण तीन मात्राओं का. समूह होता है। गण आठ हैं जिन्हें नीचे मात्राओं सहित दर्शाया गया है - यगण - 155 मगण - ऽऽऽ तगण ___ - ऽऽ। रगण ___ - 515 जगण - ।। भगण __ - ॥ नगण - ।।। सगण - ।। इस प्रकार वर्णिक छन्दों में वर्ण-संख्या और गणयोजना निश्चित रहती है। यहाँ निम्नलिखित छन्दों के लक्षण एवं उदाहरण प्रस्तुत हैंमात्रिक छन्द - 1. पद्धडिया 2. सिंहावलोक 3. पादाकुलक 4. वदनक . 5. दोहा 6. चन्द्रलेखा 7. आनन्द 8. गाहा (2) अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (छंद एवं अलंकार) www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004210
Book TitleApbhramsa Abhyas Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2008
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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