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छन्द [खण्ड 1]
छन्द के दो भेद माने गए हैं - .. 1. मात्रिक छन्द, 2. वर्णिक छन्द . 1. मात्रिक छन्द - मात्राओं की संख्या पर आधारित छन्दों को ‘मात्रिक छन्द' कहते हैं। इनमें छन्द के प्रत्येक चरण की मात्राएँ निर्धारित रहती हैं। किसी वर्ण के उच्चारण में लगनेवाले समय के आधार पर दो प्रकार की मात्राएँ मानी गई हैं - ह्रस्व और दीर्घ। ह्रस्व (लघु) वर्ण की एक मात्रा और दीर्घ (गुरु) वर्ण की दो मात्राएँ गिनी जाती हैं -
लघु (ल) (1) (ह्रस्व) गुरु (ग) (5) (दीर्घ) मात्राएँ गिनने के कुछ नियम हैं - (i) संयुक्त वर्गों से पूर्व का वर्ण यदि लघु है तो वह दीर्घ/गुरु माना
जाता है। जैसे- 'मुच्छिय' शब्द में 'च्छि' से पूर्व का 'मु' वर्ण
गुरु माना जायेगा। (ii) जो वर्ण दीर्घस्वर से संयुक्त होगा वह दीर्घ या गुरु माना जायेगा। . . जैसे- रामे। यहाँ 'रा' और 'मे' दीर्घ वर्ण है। यदि मे को ह्रस्व
- करना (पढ़ना) होगा तो 'मे' इस प्रकार लिखा जायेगा। (iii) अनुस्वार-युक्त ह्रस्व वर्ण भी दीर्घ/गुरु माने जाते हैं। जैसे
'वंदेप्पिणु' में 'व' ह्रस्व वर्ण है किन्तु इस पर अनुस्वार होने से .. यह गुरु (5) माना जायेगा। (iv) चरण के अन्तवाला ह्रस्व वर्ण भी यदि आवश्यक हो तो दीर्घ/
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अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (छंद एवं अलंकार)
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