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9. कुमअसंड दुज्जणसमदरिसिअ मित्तविणासणेण जे वियसिय ।
- सुदंसणचरिउ 8. 17.5
अर्थ - कुमुदों के समूह दुर्जनों के समान दिखाई दिये । चूंकि वे मित्र (सूर्य या सुहृद) का विनाश होने पर भी विकसित हुए। 10. झाणग्गिभूइकयकम्मबंधु भव्वयणकमलकंदोट्टबंधु ।
जंबूसामिचरिउ 1.1.8
अर्थ - जिन्होंने अपने ध्यानरूपी अग्नि से कर्मबन्ध को भस्मसात कर दिया है और जो भव्यजनोंरूपी कमल-समूह के लिए सूर्य के समान है। (ख) निम्नलिखित काव्यांशों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम तथा लक्षण बताते हुए व्याख्या कीजिए -
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1.जय सयलंगिवग्गमणसंकर सिद्धि पुरंधिय संकर संकर ।
अर्थ- समस्त प्राणीवर्ग के मन को शान्ति प्रदान करनेवाले हे देव! आपकी जय हो । सिद्धिरूपी पुरन्ध्री को सुखी करनेवाले हे शंकर आपकी जय हो।
वड्ढमाणचरिउ 10.3.4
2. णट्टु कुरंगु व वारणबारहो, णट्टु जिणिंदु व भव संसारहो।
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (छंद एवं अलंकार)
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अर्थ - लक्ष्मण को देखकर कपिल ब्राह्मण की वही दशा हुई जो शेर को देखकर मृग की होती है या जिनेन्द्र को देखकर संसारी की।
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3. अज्जु अयाले वणासइरिद्धी, अहिणवदलफलकुसुमसमिद्धी । अज्जु सुयंधु एहु सीयलु घणु, वाउ वाइ जं पूरियकाणणु ॥
पउमचरिउ 28.11.2
भगवान महावीर का समोशरण विपुलाचल पर्वत पर आया और वनमाली ने आकर राजा श्रेणिक को समाचार दिया -
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• जंबूसामिचरिउ 1.13.3-4
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