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________________ आध्यात्मिक गोलियाँ वितरित करता है।247 वह मानव जाति का नेता होता है।248 __ द्वितीय, गीता के अनुसार रहस्यवादी के उच्चतम अनुभव ने उसके सारे दुःखों को समाप्त कर दिया है।249 रहस्यवादी सब जगह आत्मा को अनुभव करता है। जैनधर्म के अनुसार रहस्यवादी ने सभी दुःखों को नष्ट कर दिया है क्योंकि उसने संसार की सभी वस्तुओं से आसक्ति को नष्ट कर दिया है। तृतीय, जैनधर्म, गीता और उपनिषद् में इस बात में समानता है कि आत्मानुभव या ब्रह्म के अनुभव के कारण रहस्यवादी मित्र और शत्रु, सुख और दुःख, प्रशंसा और निन्दा, जीवन-मरण, मिट्टी और सोना, राग-द्वेषादि- इन सब द्वैतों से परे हो गया है।250, चतुर्थ, कठोपनिषद् और मुण्डकोपनिषद् के अनुसार रहस्यवादी के हृदय की सभी गाँठें खुल गयी हैं।251 दूसरे शब्दों में, आत्मानुभव की प्राप्ति के कारण रहस्यवादी सभी प्रकार के संदेहों से मुक्त हो गया है। 247. स्वयंभूस्तोत्र, 11, 35 248. स्वयंभूस्तोत्र, 35 249. भगवद्गीता, 2/65; 5/26 ईशावास्योपनिषद्, 7 मुण्डकोपनिषद्, 3/1/2 250. प्रवचनसार, 3/41 स्वयंभूस्तोत्र, 10 कठोपनिषद्, 1/2/12 भगवद्गीता, 6/7, 8, 9; 2/56, 57 251. कठोपनिषद्, 2/3/15 मुण्डकोपनिषद्, 2/2/8 (42) Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004208
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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