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________________ मोक्षपाहुड का कथन है कि परद्रव्य (आत्मा के अतिरिक्त सभी वस्तुओं) से भिन्न स्वद्रव्य (शुद्धात्मा) के ध्यान से मोक्ष प्राप्त होता है जो तीर्थंकर का मार्ग है।234 यदि कुछ कमियों के कारण मोक्ष प्राप्त नहीं भी होता है तो स्वर्ग अवश्य प्राप्त किया जाता है। वहाँ से लौटने के पश्चात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का पालन करने से साधक मोक्ष को प्राप्त कर सकेंगे।235 ऐसा व्यक्ति इस संसार में ज्ञान, धैर्य, सम्पन्नता, स्वास्थ्य, संतोष, शक्ति और सुन्दर शरीर प्राप्त करता है।236 जैनधर्म में ईश्वरीय प्रसाद का सिद्धान्त मान्य नहीं है237 क्योंकि वहाँ तीर्थंकर से ऊपर कोई ईश्वर नहीं है और तीर्थंकर भी राग-द्वेष से मुक्त हैं। इसलिए ईश्वरीय प्रसाद जैन दृष्टिकोण से अमान्य है, केवल ध्यान के प्रयास से ही अन्तत: निर्वाण की प्राप्ति होती है। पूर्णता-प्राप्त रहस्यवादी की विशेषताएँ __प्रथम, कठोपनिषद् और मुण्डकोपनिषद् का कथन है कि चूंकि पूर्णता प्राप्त रहस्यवादी ने आत्मा का अनुभव किया है:38 इसलिए वह अपनी आत्मा से सभी प्रकार की इच्छाओं को त्यागने में सफल हुआ है।239 इस प्रकार वह आत्मा का आत्मा के द्वारा परिपूर्ण संतोष प्राप्त 234. मोक्षपाहुड, 17, 18, 19 235. मोक्षपाहुड, 20, 77 ज्ञानार्णव, 41/26, 27 236. तत्त्वानुशासन, 198 237. मूलाचार, 567 कठोपनिषद्, 2/3/14 मुण्डकोपनिषद्, 3/2/2 भगवद्गीता, 2/55 239. भगवद्गीता, 4/19 238. (40) Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004208
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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