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योग या ध्यान के शारीरिक और आध्यात्मिक प्रभाव और प्रसाद का तत्त्व
उज्ज्वल रूप, मधुर वाणी, शरीर में अच्छी गन्ध का होना, हल्का और स्वस्थ शरीर, इन्द्रियासक्ति से निवृत्ति- ये सभी योग या ध्यान के शारीरिक प्रभाव हैं।228 आध्यात्मिक प्रभाव हैं- सभी प्रकार के दुःखों और शारीरिक बंधनों से छूट जाना जिसका परिणाम ब्रह्म का अनुभव है।29 लेकिन इस प्राप्ति से पहले ईश्वरीय प्रसाद आवश्यक है। मुण्डकोपनिषद् कहता है कि आत्मा की अनुभूति केवल उसी को होती है जिसको ईश्वर स्वीकार कर लेता है।30 जब तक परमात्मा का प्रसाद प्राप्त न हो तब तक ईश्वरीय अनुभूति नहीं हो सकती।31 गीता के अनुसार जो योग में सफल होते हैं उनको आध्यात्मिक प्रभाव के रूप में परम शान्ति का अनुभव होता है और जो योग के अपूर्ण अभ्यास के कारण असफल हो जाते हैं के स्वर्ग में पैदा होते हैं, तत्पश्चात् वे समृद्ध व्यक्तियों के घर में या योगियों के कुल में पैदा होते हैं और अंत में प्रयत्न के फलस्वरूप मुक्ति प्राप्त करते हैं।232 उच्चतम अवस्था प्राप्त करने से पहले ईश्वरीय प्रसाद आवश्यक है।233
228. श्वेताश्वेतरोपनिषद्, 2/2/13 229. श्वेताश्वेतरोपनिषद्; 2/2/14, 15 230. . मुण्डकोपनिषद्, 3/2/3
कठोपनिषद्, 1/2/23 231. Constructive Survey of Upanisadic philosophy, P.345 232. भगवद्गीता, 6/15, 41, 42, 43, 44, 45 18/56, 58, 62 233. भगवद्गीता, 18/56, 58, 62
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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